पहली बार होमोसेक्शुऐलिटी के बारे में कुछ सुना था वो ये कि मुखिया जी किसी 12 साल के लड़के को लेकर मंदिर में घुसे रहते हैं. क्या करते हैं ये उन शब्दों में कहा गया. जो कहते हुए स्वत: हमारा वॉल्यूम नीचे चला जाता है. बाद में समझ आया कि इसमें होमोसेक्शुऐलिटी जैसा कुछ न था. ये चाइल्ड अब्यूज था.
तब सेक्स से जुड़ी हमारी जानकारियां बहुत सतही और सपाट शब्दों में होती थीं. हमें ये तो पता चल चुका था कि लड़कियों के पीछे नहीं आगे वाले ‘छेद’ में डालते हैं. पर हिदायत मिली थी कि घर में न बताएं. छोटे से ज्ञान के साथ ये कैसे पचा पाते कि कोई लड़का किसी दूसरे लड़के के ‘पीछे वाले छेद’ में डाल रहा है. सही-गलत की तो बात ही छोड़िए. हमें डर था कि हमने इस बारे में बात की है घर में यही पता चल गया तो पिट जाएंगे. होमोसेक्शुऐलिटी से जुड़ा पहला अनुभव यही था कि ये काम गंदे लोग करते हैं और इस बारे में किसी से बात नहीं करनी है .
आठवीं-दसवीं में लड़के गर्ल्स हॉस्टल की बातें करते. तब पता चला लड़कियां भी ऐसा कुछ करती हैं. ये तो और गलत था. सोचा कि लड़कियों को कभी हॉस्टल जाना ही नहीं चाहिए, बिगड़ जाती हैं. रिश्तेदारियों में आने वाली वो लड़कियां जो कहीं हॉस्टल में रहती थीं उनके बारे में सोच बदल चुकी थी. लेस्बियन का खाका खिंच चुका था, वो लड़कियां जो वक़्त के पहले सब सीख जाती हैं और मजे के लिए दूसरी लड़कियों का सहारा लेती हैं.
फिर कॉलेज आया ‘होमो’ शब्द सीखा. किसी दोस्त का नाम योगेश हुआ तो उस पर योGayश वाले जोक बना हंसते. Wheat की हिंदी पूछ ठट्ठा मारते. बिन मूंछों या मटककर चलने वाले लड़कों का बाथरूम में घुसना मुहाल करते. ये हमारी गलती नहीं है. ये उन तमाम लोगों की सोच है जिनने बॉबी डार्लिंग को मेल बॉडी पर गिरते देख समलैंगिकता को समझा था. हमारे लिए वो हंसने की चीज होते थे.
तभी बसों में उन जैसे अंकल भी मिलने लगे जिनका हाथ गलती से उठी टी-शर्ट से होकर पेट सहलाता. या गायत्री परिवार के सम्मेलन से लौट रहे वो अंकल जिनका हाथ RAC की सीट पर आधे सोए-सोए जाने क्यों लोअर में घुस-घुस जाता. अब तक होमोसेक्शुऐलिटी का मतलब मेरे लिए यही था कि ये लौंडेबाज बूढों के शौक हैं, या जनाना जैसे दिखने वाले लड़कों के जिनमें मर्दानगी नहीं होती. और उन्हें ये बुरी आदतें लग जाती हैं.
फिर एक दोस्त कुछ बताता है, जिसे मैं प्यार करता हूं, रिस्पेक्ट करता हूं, जो जिंदगी में बहुत गहरे तक दखल रखता है. मैं स्वीकार नहीं कर पाता हूं कि वो गे हो सकता है. तमाम कनफ्लिक्ट होते हैं. लगता है ये तो हट्टा-कट्टा है. हैंडसम सा है. गे होने के तमाम स्टीरियोटाइप टूटने लगते हैं. उनके लिए नजरिया बदलने लगता है. उनके बारे में ढंग से जानना जरुरी लगता है. बहुत नहीं पर इतना तो जरुर कि ‘गांडू’ या ‘मारना-मरवाना’ जैसी बातें मुंह से उतर जाएं.
उम्र बढ़ने के साथ आस-पास ऐसे लोग बढ़ने लगते हैं. इस एक फैक्ट कि वो होमोसेक्शुअल हैं, बाकी सब सामान्य लगता है उनमें. फिर एक दिन ये फैक्ट भी मायने नहीं रखता. समझ आने लगता है कि जैसे कोई उल्टे हाथ से खाना खा रहा है वैसा ही गे, लेस्बियन होना भी है. आप कहकर या मारकर नहीं छुड़ा सकते, ये कोई आदत नहीं है. वो हैं ही ऐसे. और इसमें कोई बुराई नहीं है. मुखिया जी में हिम्मत नहीं थी. उनकी मेहरिया उनको शादी के कुछ दिन बाद छोड़कर चली गई थी. वो नहीं कह पाए कि वो क्या हैं. उसके बाद जो वो करते हैं वो जरुर गलत है.
अब किसी लड़के को मुंह पर हाथ रख हंसते देख अजीब नहीं लगता. पहले किसी के गे होने का शक होते ही दूर भाग उठता था. एक बार फेसबुक इनबॉक्स में किसी ने बड़े प्यार से बात कर दी थी. उसे ब्लॉक कर भाग गया था. हम होमोफोबिक माहौल में रहते हैं न. करण जौहर पर बने चुटकुलों पर हंस खुद को विटी समझते हैं. ये नहीं जानते कि ये भेदभाव है. और ये भेदभाव जाने कितने ही लोगों को बंद कमरों में रोने और घुट-घुट के मरने पर मजबूर करता है.
लोगों को ग्रुप्स में बांटने वाली भाषा में कहें तो मैं स्ट्रेट हूं. पर मैं ये इसलिए नहीं कहता कि खुद को अपने गे या लेस्बियन दोस्तों से अलग मानता हूं. इसलिए कहता हूं कि अब मैं होमोफोबिक नहीं हूं. कुछ दोस्त हैं जो गे हैं. उनसे मिलने में शर्म नहीं आती. किसी तरह का गर्व भी नहीं होता. नॉर्मल लगता है. बिलकुल वैसे ही जैसे तमाम ‘स्ट्रेट’ दोस्तों के मिलने पर लगता है. चरते रहते हैं. मसखरी में फ्लर्ट भी करते हैं. गाली भी खाते हैं लेकिन अब दोस्तों के लिए ‘गांडू’ नहीं निकलता. अब समझ आ गया है ‘गांडू’ गाली नहीं है.
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ये दी लल्लनटॉप की LGBTQ सीरीज का पहला आर्टिकल है. LGBTQ का मतलब है लेस्बियन, गे, बायसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर. यानी इस दुनिया के वो लोग जो ‘नॉर्मल’ की परिभाषा में फिट नहीं होते, उनका एक टुकड़ा. लेकिन वो परिभाषाएं ही क्या जो कभी बदल न सकें. और वो लोग ही क्या जो जिंदा होने के लिए परिभाषाओं में फिट होना चाहें. बस ऐसे ही कुछ लोगों को हम आप तक पहुंचाएंगे आने वाले दिनों में. दी लल्लनटॉप पढ़ते रहिये.
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