बीते दिनों, तमाम बीते दिनों की तरह सोशल मीडिया पर एक गुबार उठा. हर तरफ धूल ही धूल. वैसी जैसी किसी सुदूर गांव में किसी महंगे नेता के हेलीकॉप्टर आने पर उड़ती थी. जनता उसे देखने को घंटो रहती थी. हफ़्तों उसकी बातें खतम नहीं होती थी. और महीनों उस गुबार से उड़ी धूल मसूढ़ों में चिपकी रहती थी. सोशल मीडिया पर कोई नेता तो नहीं लेकिन एक ऐश-ट्रे की तस्वीर दिखी. घर के झुंडों यानी मोहल्लों में जिन्हें ‘शरीफ़ लोग’ कहते हैं, उनके ड्राइंग रूम में ऐसी ऐश-ट्रे नहीं दिखती. लेकिन दिक्कत ये उठी कि आखिर ये किसी वेबसाइट पर क्यूं दिख रही थी. इस बारे में कई लॉजिक उठे. कुछ बे-लॉजिक भी थे. लेकिन कह हर कोई रहा था. जो कहा जा रहा था वो कहीं सुना भी जा रहा था. पूजा सिंह नाम की लल्लनटॉप रीडर ने हमें ये लिख भेजा. इसके अलावा एक पक्ष केतन का भी है जिसे आप यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं.
कई भारतीय फेसबुक यूजर सोमवार सुबह उस समय हक्के-बक्के रह गये जब एक के बाद एक कई लोगों ने ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट एमेजॉन पर बेचे जा रहे एक प्रॉडक्ट की तस्वीर शेयर कर उसकी आलोचना करनी शुरू की. यह आलोचना सही भी थी. यह प्रॉडक्ट दरअसल एक एशट्रे थी जिसे एक महिला की शक्ल में ढाला गया था. महिला की उस आकृति की योनि में सिगरेट बुझाने का इंतजाम किया गया था. हैरत की बात है कि एमेजॉन को यह एक ‘क्रिऐटिव एशट्रे फॉर डेकोरेशन‘ नजर आ रही है.
देखते ही देखते फेसबुक पर यह तस्वीर वायरल हो गयी. तमाम लोगों ने इसकी जमकर लानत-मलामत की. यहां यह सवाल उठ सकता है कि प्रोग्रेसिव तबका आर्ट पीस के नाम पर कई तरह की न्यूड और दूसरों की दृष्टिï में वल्गर चीजों को स्वीकार करता रहा है तो फिर इस एशट्रे में ऐसा क्या है जो इसका चौतरफा विरोध हो रहा है. यह ऐशट्रे न्यूडिटी और वल्गारिटी से ज्यादा वायलेंट यानी हिंसक है.
कम से कम मुझे तो यही लगा. एक लड़की की वजाइना में सिगरेट बुझाने की कोशिश! कितनी जघन्य और क्रूर सोच होगी इसे डिजाइन करने वाले की. मुझे कह लेने दीजिये कि इसे डिजाइन करने वाले कलाकार (?) के मन में भी एक पोटेंशियल रेपिस्ट छिपा होगा. निर्भया कांड के उन दोषियों की तरह जिन्होंने उसके शरीर में लोहे की रॉड डाल दी थी.
कम से कम मुझे तो यही लगा. एक लड़की की वजाइना में सिगरेट बुझाने की कोशिश! कितनी जघन्य और क्रूर सोच होगी इसे डिजाइन करने वाले की. मुझे कह लेने दीजिये कि इसे डिजाइन करने वाले कलाकार (?) के मन में भी एक पोटेंशियल रेपिस्ट छिपा होगा. निर्भया कांड के उन दोषियों की तरह जिन्होंने उसके शरीर में लोहे की रॉड डाल दी थी.
मैंने इंटरनेट पर इस कलाकार को तलाशने की कोशिश की. मुझे यह कलाकार तो नहीं मिला लेकिन ऐसी ही एक और एशट्रे जरूर मिली जिसे एक महिला कलाकार कॉलिन थॉंपसन ने डिजाइन किया था. उस एशट्रे के बारे में सुप्रसिद्घ नारीवादी नॉबोनिसो गासा ने कहा था कि तमाम कलाकृतियों में महिलाओं को ऐसे ही बेबस चित्रित किया जाता है. उन्होंने कहा कि वजाइना को एशट्रे के रूप में दिखाना महिलाओं के साथ क्रूर हिंसा है. दुनिया में पहले ही महिलाओं पर इतने अत्यचार हो रहे हैं, अब उन पर ऐसी क्रूरता मत कीजिये.
सुप्रसिद्घ मनोचिकित्सक डॉ. एस टंडन कहते हैं कि यह विज्ञापन महिलाओं के बारे में नहीं बल्कि इन्हें बनाने और खरीदने वाले पुरुषों के मानस के बारे में ज्यादा बताता है. यह एक बीमार मानसिकता का प्रतीक है. इसे बनाने वाले के बारे मैं कुछ नहीं कह सकता क्योंकि कई बार ऐसे आर्ट तैयार करने वालों के मन में उसकी कोई पॉजिटिव व्याख्या होती है लेकिन प्रथमदृष्टया तो यह एक डेरोगटरी और वायलेंट प्रॉडक्ट लगता है और इसे बनाने और खरीदने वाले लोगों के आसपास जो भी महिलाएं हैं उनके हिंसा की शिकार होने की आशंका ज्यादा है.
ऐसा नहीं है कि आर्ट और आर्टिस्ट न्यूडिटी के लिए कभी आलोचना के शिकार नहीं हुए. एम एफ हुसैन को सरस्वती और सीता- हनुमान की पेंटिंग्स के लिए अपना देश छोडऩा पड़ा तो पाब्लो पिकासो को बार्सिलोना के ब्रॉथेल (वेश्यालय) के चित्रण के लिए तगड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा.
ऐसा नहीं है कि आर्ट और आर्टिस्ट न्यूडिटी के लिए कभी आलोचना के शिकार नहीं हुए. एम एफ हुसैन को सरस्वती और सीता- हनुमान की पेंटिंग्स के लिए अपना देश छोडऩा पड़ा तो पाब्लो पिकासो को बार्सिलोना के ब्रॉथेल (वेश्यालय) के चित्रण के लिए तगड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा.
लेकिन वहां मामला कला और उसकी समझ का है जबकि यहां मामला स्त्री जाति के अपमान से जुड़ा हुआ है. इस एशट्रे प्रकरण से मुझे जर्मनी के रोलिंग स्टोन म्यूजियम में प्रस्तुत एक यूरिनल की याद आती है जिसे एक औरत के मुंह का आकार दिया गया था. उस यूरिनल के बारे में स्थानीय नारीवादी रोडा आर्मब्रस्टर ने एक खास बात कही थी कि उस मुंहनुमा यूरिनल में होंठ और दांत तो हैं लेकिन जुबान नहीं है. यानी उसके पास प्रतिरोध की ताकत नहीं है उसे केवल पुरुष की गंदगी अपने अंदर समेटनी है.
उसे लेकर छिड़े विवाद पर म्यूजियम के फाउंडर यूनी स्कॉर्डर ने पूरी बेशर्मी से कहा था कि वह बहुत महंगी कृति है और वह जहां है वहीं रहेगी चाहे जितना विरोध हो.
उसे लेकर छिड़े विवाद पर म्यूजियम के फाउंडर यूनी स्कॉर्डर ने पूरी बेशर्मी से कहा था कि वह बहुत महंगी कृति है और वह जहां है वहीं रहेगी चाहे जितना विरोध हो.
यह सच है कि पुरुषों की शेविंग क्रीम से लेकर उनकी बनियान तक महिलाओं को हथियार बनाकर बेचे जा रहे हैं. उनका शरीर और उनकी सेक्सुएलिटी बीती एक सदी से विज्ञापनों के केंद्र में है अब कम से कम कलाकृति के नाम पर बने प्रॉडक्ट्स में उनके साथ यह क्रूरता तो मत कीजिये. भला वह कौन सा आनंद है जो एक पुरुष किसी स्त्री के मुंह में पेशाब करके या उसकी वजाइना में सिगरेट बुझाकर लेना चाहता है. मैं सचमुच जानना चाहती हूं.