मंदसौर में पुलिस की गोली से मरने वाले 5 लोगों की पहचान हो चुकी है। इन लोगों के पास ना तो कोई जमीन थी और ना ही कोई नौकरी.. एक 12वीं में पढ़ रहा था तो एक भारतीय सेना का जवान बनना चाहता था।
पुलिस की गोली ने जिन 5 लोगों की जान ले ली, उनमें से किसी के नाम जमीन का एक टुकड़ा तक नहीं था। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार मारे गए उन 5 लोगों में 19 साल का नौंवी क्लास का एक छात्र था, जिसे बायोलॉजी से बेहद लगाव था। दूसरा 23 साल का एक बेरोजगार था, जिसकी दो महीने पहले ही शादी हुई थी और वो आर्मी जॉइन करना चाहता था। तीसरा 30 साल का एक मजदूर था। चौथा और पांचवा 22 और 44 साल के दो शख्स थे, दोनों दूसरे के खेतों में काम किया करते थे, उनके नाम जमीन का एक छोटा टुकड़ा भी नहीं था। मारे गए इन 5 लोगों के परिवार वाले आज सवाल पूछ रहे हैं। आखिर इन लोगों को पुलिस की गोली का शिकार क्यों होना पड़ा?
इस आंदोलन का सबसे दर्दनाक पहलू तो ये है कि मारे गए वो 5 लोग किसान आंदोलन की आवाज थे ही नहीं। खेती किसानी के लिए अपनी जिंदगी की आहुति देने वाले इन 5 लोगों के नाम तो जमीन का एक टुकड़ा तक दर्ज नहीं था। सरकार अगर किसानों का कर्ज माफ कर देती तो अभिषेक दिनेश पाटीदार की जिंदगी पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। 9वीं क्लास में पढ़ने वाला अभिषेक दिनेश पाटीदार मंदसौर नीमच हाइवे के पास बसे गांव बारखेड़ा पंथ का रहने वाला था। उसका शव मिला तो परिवार और गांववालों ने मिलकर हाइवे पर जाम लगा दिया। जाम तुड़वाने कलेक्टर साहब पहुंचे तो उनके साथ हाथापाई तक हुई।
अभिषेक के परिवार वाले कहते हैं कि उनके लड़के का आंदोलन की हिंसा से कोई लेना देना नहीं था। अभिषेक के पिता दिनेश कहते हैं कि उन्होंने अपने बेटे को आंदोनकारियों के नजदीक जाने और पथराव करने से मना किया था। परिवार वाले कहते हैं कि वो सिर्फ नारेबाजी कर रहा था, फिर उसे पुलिस ने क्यों मारा? उनका आरोप है कि अभिषेक को बिल्कुल नजदीक से गोली मारी गई थी। एक गोली पेट में लगी और एक कंधे पर।अभिषेक भीड़ का हिस्सा था। उस भीड़ में किसान भी थे, मजदूर भी, लड़के-बच्चे भी और तमाशबीन भी। गोलीबारी से एक दिन पहले बंदी को लेकर किसान और व्यापारियों में झड़प हुई। दूसरे दिन दोनों पक्ष सड़क पर एकदूसरे से भिड़ गए। किसान कहते हैं कि व्यापारियों की आड़ लेकर पुलिस वालों ने खुलेआम फायरिंग की। पुलिस कहती है कि आंदोलनकारी पुलिस स्टेशन में आग लगाने जा रहे थे, मजबूरन उन्हें रोकने के लिए फायरिंग करनी पड़ी।
पूनमचंद उर्फ बब्लू जगदीश पाटीदार किसान आंदोलन में हिस्सा ले रहा था। तकरावड गांव के रहने वाले पूनमचंद के पिता की 2016 में मौत हो गई थी। उसे बीएससी की पढ़ाई छोड़कर अपनी 7 बीघे की खेती पर ध्यान देना पड़ा। हालांकि जमीन का टुकड़ा अभी तक उसके नाम पर नहीं था। पूनमचंद अपने दोस्तों के साथ आंदोलन में शामिल हुआ था। परिवार और दोस्त आरोप लगा रहे हैं कि पूनमचंद उस वक्त पानी पी रहा था, जब उसे पुलिस की गोली लगी। दोस्त कहते हैं कि उन्हें अंदेशा तक नहीं था कि पुलिस गोली चला देगी। पूनमचंद की बेवा के पास पूरी जिंदगी पड़ी है और आगे सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा है।
मारे गए लोगों में चैनराम गनपत पाटीदार भी है। पिछली 29 अप्रैल को ही इसकी शादी हुई थी। पिता के पास दो बीघे से भी कम जमीन है। उसके पिता कहते हैं कि बेटा का सपना सेना में जाने का था। हर बार सेना की लिखित परीक्षा में पास हो रहा था। लेकिन आई टेस्ट में फेल हो जा रहा था। परिवार के पास कभी अच्छी खासी खेती हुआ करती थी। लेकिन एक डैम के निर्माण में सारी खेती चली गई और मुआवजे के नाम पर बड़ी ही छोटी रकम मिली। परिवार को लगता चैनराम से ही सारी उम्मीदें लगी हुई थी। सारी उम्मीदों की पुलिस के हाथों हत्या हो गई।
लोध गांव का रहने वाला सत्यानारायण मांगीलाल मजदूरी करके अपने और अपने परिवार का पेट पाल रहा था। रोज के 200 रुपए की मजदूरी में बड़ी मुश्किल से जिंदगी कट रही थी। कहने को परिवार के पास 6 बीघे की जमीन थी लेकिन वो जमीन भी परिवार के नाम पर नहीं थी। उसके परिवार के लोग कहते हैं कि वो तो रैली देखने के नाम पर घर से निकला था। पता नहीं कैसे पुलिस की गोली का शिकार बन गया।
कन्हैयालाल धुरीलाल पाटीदार भी पुलिस की गोली का शिकार होकर मारा गया। उसके दो बच्चे हैं। कन्हैयालाल और उसके तीन भाइयों के पास 7 बीघे की जमीन है लेकिन उनके नाम पर नहीं। परिवार कह रहा है कि वो निंश्चित था कि कुछ गलत नहीं होगा। पड़ोसी कहते हैं कि पुलिस ने उसे बातचीत के लिए बुलाया था लेकिन नजदीक जाने पर गोली मार दी।
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