सेना का सामना हमेशा आतंकियों से होता है। इसके लिए बुलेट प्रूफ जैकेट होना बहुत जरूरी है। कई बार बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं होने की वजह से हमारे जवानों की जान चली जाती है।
सेना में बुलेटप्रूफ जैकेट की कमी को दूर करने के लिए भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर शांतनु भौमिक एक ऐसी तकनीक लेकर आएंगे जिससे सेना को सालाना 20,000 करोड़ रुपये तक की बचत होगी। रक्षा मंत्रालय की कमिटी ने इस जैकेट के इस्तेमाल पर मुहर लगा दी है। पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीक से बनी यह जैकेट अल्ट्रा मॉडर्न लाइटवेट थर्मो-प्लास्टिक टेक्नॉलजी से बनी है। इसका निर्माण प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया प्रॉजेक्ट के अंतर्गत होगा। प्रधानमंत्री कार्यालय की हरी झंडी मिलने के बाद इसका निर्माण शुरू कर दिया जाएगा।
डीआरडीओ और रक्षा मंत्रालय के सहयोग से 70 सालों सें पहली बार आर्मी के लिए इस तरह से देशी तकनीक से बुलेटप्रूफ जैकेट का निर्माण होने जा रहा है। अभी भारत अपने सुरक्षा बलों के लिए अमेरिका से जैकेट आयात करता है। एक जैकेट की कीमत अभी 1.5 लाख रुपये तक आती है,लेकिन शांतनु भौमिक के इस जैकेट की कीमत मात्र 50,000 रुपये होती है। इस तरह भारत सरकर इन जैकेटों की खरीद पर भारत सरकार सलाना 20,000 करोड़ रुपये बचा पाएगी।
वर्तमान में सुरक्षा बलों के द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे जैकेट का वजन 15 से 18 किलो तक होता है, लेकिन इस मॉडर्न जैकेट का वजन बस 1.5 किलोग्राम के आसपास होगा। इसके अंदर कार्बन फाइबर की लेयर चढ़ी है जुसकी वजह से यह 57 डिग्री तक के तापमान में काम करेगा।
प्रफेसर शांतनु भौमिक कोयंबटूर अमृता यूनिवर्सिटी में एयरो स्पेस इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रमुख हैं। उन्हें अपनी इस नई आविष्कार से काफी उम्मीदें हैं। सेना के पूर्व डेप्युटी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ले. जनरल सुब्रत साहा को इस प्रॉजेक्ट को शुरू करने के लिए उन्होंने धन्यवाद दिया। उन्होंने अपनी इस उपलब्धि को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को समर्पित किया है।
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