किरण बेदी. नाम सुनते ही एक जबराट, कड़क और बेदाग छवि वाली महिला आईपीएस की तस्वीर ज़ेहन में आती है. जो अपने तेजतर्रार छवि के लिए मशहूर थी. एक ऐसी महिला आईपीएस जिसने अपनी ड्यूटी को पूरी जिम्मेदारी से निभाया. पुलिस में होते हुए अपनी वर्दी को हमेशा ही करप्शन से बचाए रखा. रिटायर होने के बाद राजनीति में किस्मत आजमाई लेकिन सफलता हाथ न लगी. फिलहाल किरण पुडुचेरी की उपराज्यपाल हैं. 9 जून को किरण का जन्मदिन होता है. आज हम आपको किरण बेदी के बारे में प्रचलित झूठ के बारे में बताते हैं कि उनमें कितनी सच्चाई थी.
क्या सच में किरण बेदी पहली महिला आईपीएस नहीं हैं:
2015 का दिल्ली विधानसभा चुनाव सही मायनों में बीजेपी के लिए उतना डैमजिंग नहीं था. जितना कि किरण बेदी के लिए. बीजेपी ने सीएम कैंडिडेट के तौर पर किरण बेदी को उनकी बेदाग छवि के वजह से ही चुना था. लेकिन किरण का नाम आते ही विरोधियों ने उनसे जुड़ी विवादों को गूगल करना शुरू कर दिया. लेकिन हाथ कुछ न लगा. इसके बाद विरोधियों ने 14 जून 1977 के ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में कथित तौर पर छपी एक खबर का हवाला देकर लिखना शुरु किया कि किरण बेदी देश की पहली महिला आईपीएस नहीं थीं. बाद में इस खबर को धड़ाधड़ कई वेबसाइटों ने भी छापा.
कथित तौर पर ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में फर्स्ट आईपीएस ऑफिसर किल्ड इन कार हेडिंग के साथ ये खबर छपी थी. जिसमें पंजाब कैडर की सुरजीत कौर को देश की पहली महिला आईपीएस बताया गया था. लेकिन बाद में पता चला कि ये खबर पूरी तरह से फर्जी थी. फर्जी कैसे वो भी बता देते हैं. किसी भी अखबार में खबर मास्टरहेड के नीचे सीधे छापा जाए पॉसिबल नहीं है. दूसरा ये कि 14 जून 1957 को शुक्रवार नहीं था. ऑनलाइन ऐसी बहुत सारी वेबसाइट्स हैं, जो न्यूजपेपर की फर्जी खबर बनाते हैं. तो ये खबर किसी ने टाइम्स ऑफ इंडिया के नाम से बनाकर किरण बेदी को परेशान करना चाहा था.
ये अखबार की कतरन कितनी सही है, ये जांचने के लिए हमने ऑनलाइन वेबसाइट की मदद से अपनी साइट ‘द लल्लनटॉप’ के लिए ये न्यूपेपर डिजाइन कर ली. तो अब आप समझ ही गए होंगे कि किरण बेदी को लेकर ये कितना फर्जी न्यूज था.
जब इंदिरा गांधी की कार को क्रैन से उठवा लिया:
किरण बेदी के बारे में ये वाला किस्सा तो सबने सुना होगा. कैसे इंदिरा गांधी जैसी नेता को किरण ने रूल सीखा दिया था. किस्सा कुछ यूं है कि 1983 में किरण बेदी दिल्ली की ट्रैफिक कमिश्नर बनी थीं. एक दिन सब इंस्पेक्टर निर्मल सिंह ने कनॉट प्लेस में एक एम्बेसेडर कार को गलत जगह पार्क देखा और किरण बेदी को बताया. किरण बेदी ने कार को थाने लाने कहा. जब पुलिस अपना काम कर रही थी तब कार का ड्राइवर दौड़ता हुआ आया और कहा कि ये कार इंदिरा गांधी की है. इंदिरा गांधी जो उस समय देश की सबसे ताकतवर नेता और प्रधानमंत्री थीं. लेकिन तब किरण ने कहा था कि कार किसी की भी हो जुर्माना भरना ही होगा. फिर कार को क्रैन से उठवा थाने भेज दिया. जिसके बाद इंदिरा गांधी ने किरण की तारीफ करते हुए कहा कि देश को ऐसे अफसरों की जरूरत है.
लेकिन इस किस्से का सच 32 सालों बाद खुद किरण बेदी ने बताया. 2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान पत्रकार रविश कुमार को दिए एक इंटरव्यू में किरण ने कहा कि वो कार निर्मल सिंह ने उठवाई थी. जिसके बाद उनसे पूछा गया था कि क्या वो निर्मल सिंह पर कार्रवाई करेंगी? उस समय किरण जवाब दिया था कि मैं उन्हें सम्मानित करूंगी कि उन्होंने इतनी हिम्मत दिखाई.
तिहाड़ में विपश्यना की शुरुआत का सच:
किरण बेदी पुलिस की जिम्मेदारियों के अलावा समाज सेवा भी करती हैं. अपने कार्यकाल के दौरान भी किरण समाज सुधार के कई बेहतरीन काम किए हैं. जिसकी हमेशा ही चर्चा होती है और लोगों ने खूब पसंद किए. 1994 में किरण बेदी को तिहाड़ जेल का महानिरीक्षक बनाया गया. वहां की कमान संभालने के बाद किरण ने कैदियों के सुधार के लिए बहुत सारे काम किए. जैसे योग ध्यान, शिक्षा. उसी समय तिहाड़ में विपश्यना की शुरुआत भी करवाया. लेकिन ये पूरा सच नहीं है.
किरण बेदी को तिहाड़ में कैदियों के बीच विपश्यना करवाने की सलाह तिहाड़ के ही अस्टिेंट सुपरिटेंडेंट राजेंद्र कुमार ने दी थी. जिन्होंने खुद विपश्यना कर रखा था. राजेंद्र कुमार की बात मानकर किरण बेदी तिहाड़ जेल में इसकी शुरुवात की. किरण का तिहाड़ जेल में किए गया काम आज भी लोग भूल नहीं है. भले ही नेता के तौर पर किरण विवादित हो गईं, बहुत सफल नहीं हुई लेकिन बतौर आईपीएस उन्होंने अपना काम बखूबी से निभाया है.
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