हमारा देश आजादी के बाद से ही लगातार आतंकियों के निशाने पर रहा है। ऐसे में देश की सुरक्षा के लिये 24 घंटे तैनात रहने वाले बहादुर जवान अपनी भूमिका को हमेशा अच्छे से निभाते रहे हैं।
आजादी के बाद से ही देश के अंदर भी कई बड़े आतंकी हमले हुए, जिनमें अब तक लाखों लोग बेमौत मारे गये। कई सालों तक आतंक का दंश झेलने के बाद वर्ष 1984 में भारत ने एनएसजी का गठन किया। यह एक ऐसी कमांडो फोर्स है, जो देश में होने वाली आतंकी गतिविधियों से निपटती है। मुंबई हमले के दौरान एनएसजी टीम ने ही खूंखार आतंकवादी कसाब को जिंदा पकड़ा था और उसके साथियों को मौत के घाट उतारा।
लेकिन क्या आपको पता है कि एनएसजी के ये बहादुर कमांडो आखिर आते कहा से हैं, और इनकी ट्रेनिंग कैसी होती है जो इन्हें इतना खतरनाक बनाती है। चलिये हम आपको बताते हैं कि एनएसजी या यूं कहें कि ब्लैक कैट कमांडो बनने के लिये इन कमांडोज को कैसी स्थिति से गुजरना पड़ता है।
एनएसजी का मूल मंत्र है ‘सर्वत्र सर्वोत्तम सुरक्षा’। एनएसजी कमांडोज को ‘नेवर से गिवअप (Never Say Give up)’ भी कहते हैं। काली वर्दी और बिल्ली जैसी चपलता के चलते इन्हें ब्लैक कैट कहा जाता है। हर किसी को ब्लैक कैट कमांडो बनने का मौका नहीं मिलता है। इसके लिए आर्मी, पैरा मिलिट्री या पुलिस में होना जरूरी है। आर्मी से 3 और पैरा मिलिट्री से 5 साल के लिए जवान कमांडो ट्रेनिंग के लिए आते हैं।
फिजिकल ट्रेनिंग से होती है शुरुआत: कमांडो ट्रेनिंग के लिये उम्र 35 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। सबसे पहले फिजिकल और मेंटल टेस्ट होता है। 12 सप्ताह तक चलने वाली ये देश की सबसे कठिन ट्रेनिंग होती है। शुरूआत में जवानों में 30-40 प्रतिशत फिटनेस योग्यता होती है, जो ट्रेनिंग खत्म होने तक 80-90 प्रतिशत तक हो जाती है। जिस्म के निचले हिस्से को मजबूत करने के साथ-साथ दिमाग और शरीर में तालमेल बैठाने के लिए कमांडोज को पॉलीमीट्रिक जम्प ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद किसी भी मुश्किल को देखते ही फौरन रिएक्शन लिया जा सके, इसके लिए जिग जैग रन की ट्रेनिंग दी जाती है।
कमांडोज को पेट की मसल्स को मजबूत करने के लिए सिट अप्स करवाई जाती हैं। जिस्म के ऊपरी हिस्से को मजबूत बनाने के लिए लॉग एक्सरसाइज एक्सरसाइज करवाते हैं, जिसमें हाथ सबसे खास होते हैं। शारीरिक रूप से मजबूत बनाने के लिये इन कमांडोज को रोज दौड़ लगवाई जाती है। इसकी शुरुआत 60 मीटर की स्प्रिंग दौड़ से होती है जिसे पूरा करने के लिये सिर्फ 11 से 13 सेकेंड का वक्त दिया जाता है। इसके बाद 100 मीटर की स्प्रिंग दौड़ होती है जिसके लिए 15 सेकेंड का वक्त दिया जाता है। मगर ट्रेनिंग को और अधिक कठिन बनाने के लिए हाथों में हथियार और पीठ पर वजन भी लाद दिया जाता है।
एक बंदर की तरह रस्सी के सहारे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना भी कमांडोज की ट्रेनिंग का जरूरी हिस्सा है, इसीलिये इन कमांडोज को मंकी क्रॉल ट्रेनिंग दी जाती है। शरीर के ऊपरी हिस्से को मजबूत करने के लिये इनक्लाइंड पुश अप्स करवाये जाते हैं। मानसिक रूप से कमांडोज को फिट बनाये रखने के लिये उन्हें कई ट्रेनिंग दी जाती है। कमांडोज कॉन्फिडेंस बना रहे इसके लिये उन्हें 9 फुट के गड्ढे को फांदने की ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद दो तह की दौड़ होती है, जिसमें एक तो 25 मिनट में 5 किलोमीटर और दूसरी 9 मिनट में 2.5 किलोमीटर की दौड़ लगवाई जाती है।
अब बारी आती है ट्रेनिंग के अंतिम चरणों की, जो इन अफसरों को पूरी तरह कमांडो बनाते हैं। 16 मिनट में 26 बाधाओं को पार किए बिना कोई भी कमांडो नहीं बन सकता है, इस ट्रेनिंग को बैटल असॉल्ट ऑब्स्टेकल कोर्स कहते हैं। ट्रेनिंग के अंतिम चरण में डब्ल्यू वॉल, टारजन स्विंग, कमांडो हैंडवॉक जैसी ट्रेनिंग के जरिये कमांडोज की शारीरिक क्षमता परखी जाती है। इसके अलावा आग के गोले से कूदने वाली ट्रेनिंग यानी टाइगर जंप, हाई बैलेंस, पैरलल रोप, स्पाइडर वेबनेट के साथ रस्सी के सहारे चढ़कर 26 फुट ऊंची दीवार फांदना भी जरूरी होता है।
एक कमांडो बनने की ट्रेनिंग में अब तक तो बात हुई एक कमांडो को मजबूत बनाने की, लेकिन इसके बाद बारी आती है एक्शन की। भले ही हाथों में हथियार न हो, लेकिन एक कमांडो दुश्मन को मार गिराने की ताकत रखते हैं। इसमें कई तरह की मार्शल आर्ट की कलाएं भी सिखाई जाती हैं। दुश्मन के हाथों से चाकू छीनकर कैसे उससे उसी का गला काटना है, ये खतरनाक तरीका भी इन कमांडोज को सिखाया जाता है। किसी विमान के हाइजैक हो जाने की स्थिति से कैसे निपटना है इसके लिए भी एक खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। एक बनावटी विमान की मदद से ऐसी स्थिति से निपटने की ट्रेनिंग दी जाती है।
दुश्मन सिर्फ आसमान या जमीन से ही नहीं आते, इसलिए इन कमांडोज को पानी में भी उतरना बखूबी आना चाहिए। खासकर सर्च एंड रेस्क्यू मिशन पर यह ट्रेनिंग बहुत काम आती है। ट्रेनिंग खत्म होने के बाद कमांडोज को हकीकत की जमीन पर लाया जाता है, जहां पर उन्हें आग की लपटों से भी गुजरना होता है। कभी कटीले तारों को झेलना पड़ता है, तो कभी तार के सहारे एक जगह से दूसरी जगह पर जाना होता है। इन सबके बाद बारी आती है मॉक ड्रिल की। इसमें छोटे-छोटे मिशन को अंजाम दिया जाता है, ताकि हकीकत से निपटने में आसानी हो सके। कई बार हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल एक एरियल प्लेटफॉर्म की तरह किया जाता है। इन कमांडोज के साथ अत्याधुनिक हथियारों के अलावा लैब्रोडोर डॉग भी होते हैं।