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आचार्य बालकृष्ण की पर्सनल कहानी सामने आई

रामदेव का नाम तब रामकिशुन होता था. किशोरावस्था में वह परिवार को बिना बताए खानपुर के गुरुकुल में भर्ती हो गए. संस्कृत की पढ़ाई के वास्ते. यहीं पर साल 1987 में उनकी मुलाकात बालकृष्ण से हुई. यानी आज से 30 साल पहले. तब से दोनों साथ हैं. आज रामदेव का जिक्र हो तो बालकृष्ण भी विमर्श में आ ही जाते हैं. मगर उनके बारे में जानकारी बहुत कम है. वह ज्यादा इंटरव्यू नहीं देते. फोटो ऑप की खोज में नहीं रहते.
उनका जिक्र जब आता है, तो विवादों के संदर्भ में. कभी यूपीए सरकार के दौरान का पासपोर्ट विवाद, कभी प्रॉडक्ट को लेकर हुए कुछ विवाद. लेकिन यहां हम आपको आचार्य बालकृष्ण की निजी जिंदगी के कुछ तथ्यों सत्यों से वाकिफ करा रहे हैं. बरास्ते कौशिक डेका की किताब. ‘द बाबा रामदेव फिनोमिना- फ्रॉम मोक्ष टु मार्केट’. इसे रूपा पब्लिकेशन ने छापा है.


आचार्य बालकृष्ण  और बाबा रामदेव

पहले बालकृष्ण का बेसिक परिचय लेते हैं. और फिर कुछ रोचक फैक्ट्स.
पूरा नामः बालकृष्ण सुवेदी.
माता-पिताः सुमित्रा देवी और जय वल्लभ. दोनों नेपाल के नागरिक.
पदः पतंजलि आयुर्वेद समेत 34 कंपनियों के एमडी. पतंजलि यूनिवर्सिटी के वीसी.
पताः 200 बेड वाले पतंजिल आयुर्वेद अस्पताल में. ये बना है हरिद्वार में. अस्पताल के सामने एक 10 एकड़ की नर्सरी है, जो बालकृष्ण की फेवरिट जगह है.

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1. दोनों के पहले गुरु एक थे. आचार्य प्रद्युम्न. जो खानपुर, हरियाणा में गुरुकुल चलाते थे. आचार्य अब वृद्ध हो चले हैं. और रामदेव, बालकृष्ण के साथ उनके हरिद्वार स्थित आश्रम में रहते हैं. जब भी इन दोनों को समय मिलता है, प्रद्युम्न संग संगत करते हैं.
2. बालकृष्ण के पिता जय वल्लभ उत्तराखंड के एक आश्रम में सिक्योरिटी गार्ड थे. फिर वह अपने देश नेपाल लौट गए. जय वल्लभ और सुमित्रा के छ बच्चे हुए. उनमें से एक थे बालकृष्ण. बाल की पैदाइश के कुछ बरस बाद वल्लभ गांव लौट गए और खेती करने लगे. उसके कुछ बरस बाद 12 साल के बालकृष्ण हरियाणा आ गए पढ़ाई के वास्ते. उन्हें शुरुआत से ही योग के आहार पक्ष और उसमें बी जड़ी बूटियों में खास दिलचस्पी थी.
3. बीच में कुछ बरस रामदेव और बालकृष्ण अलग रहे. रामदेव एक दूसरे गुरुकुल में पढ़ने चले गए. जबकि बालकृष्ण जड़ी बूटियों का अध्ययन करने गंगोत्री की तरफ निकल गए. कुछ बरस बाद रामदेव भी वहीं पहुंचे.
4. 1993 में दोनों वापस हरिद्वार लौटे. रामदेव ने योग सिखाना शुरू किया, जबकि बालकृष्ण चूरण बनाने में लग गए. पहली सफलता मिली दो साल बाद. मधुसूदन चूर्ण के जरिए. रामदेव और बालकृष्ण इसे बेचने असम गए. वहां बोडोलैंड की मांग कर रहे चरमपंथी संगठन के असर वाले जिलों में कालाजार और मलेरिया फैला था. दोनों वहां काम में जुट गए. शुरू में बोडो लोगों को लगा कि ये दोनों केंद्र सरकार के एजेंट हैं. इसाई मिशनरी भी दुश्मनी मानने लगीं. जब चूर्ण का असर दिखने लगा, तो बोडो चरमपंथियों का रुख बदल गया. फिर उन्होंने ही हिफाजत का भरोसा दिलाया.
5. रामदेव देश भर में घूमकर योग शिविर करने लगे थे. छोटे स्तर पर. उधर बालकृष्ण हरिद्वार के पास सही जगह और सही सॉल्यूशन की तलाश में थे. तब उनकी मुलाकात हुई पंडित देवी दत्त और उनके बेटे अखिलेश से. साल था 1997. इन दोनों ने बालकृष्ण को एक भस्म दी. वह इससे दवाइयां बनाने लगे. हरिद्वार के पास कनखल में. मगर बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए पैसे नहीं थे. उन्होंने गुरुनिवास आश्रम के छत्रपति स्वामी दास से उधार लिया. जल्द ही उनकी दवाइयां मशहूर होने लगीं.



6. 5 जनवरी 1995 को रामदेव और बालकृष्ण ने दिव्य फार्मेसी रजिस्टर करवाई. कनखल में चार कमरों में टिन शेड के तले पहला कारखाना बना. यहां दवाइयां बनतीं और चार वैद्यों वाला अस्पताल चलता. अब ये चार कमरे चार मंजिल की बिल्डिंग में बदल चुके हैं. दवाइयों के बाद जो पहला प्रॉडक्ट यहां से लॉन्च हुआ, वह था च्यवनप्राश.
7. इस कहानी का एक दूसरा वर्जन भी है. इसके मुताबिक रामदेव, बालकृष्ण और आचार्य कर्मवीर मिले. हरिद्वार के त्रिपुर योग आश्रम में. यहां तीनों दवाइयां तैयार करने में आश्रम प्रबंधन की मदद करते थे. फिर उनकी मुलाकात कृपाल बाग आश्रम के स्वामी शंकर देव से हुई. चारों ने मिलकर दिव्य योग मंदिर स्थापित किया. यह एक ट्रस्ट था. 9 महीने बाद बालकृष्ण ने दो कारोबारियों को बाहर कर दिया. कहा गया कि गलत काम करते हैं. फिर 1997 में साध्वी कमला को निकाला गया. फिर करमवीर को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया. अब बचे तीन. उसमें भी शंकर देव ने लिख दिया. ट्रस्ट के बंटवारे की स्थिति में ट्रस्ट की संपत्ति इसी नीयत के साथ बने दूसरे ट्रस्ट को सौंप दी जाए.
8. साल 2007 में रामदेव के तीसरे और आखिरी गुरु स्वामी शंकर देव मिसिंग हो गए. बकौल रामदेव उन्हें कई बीमारियां थीं. तकलीफ में थे. एक दिन आश्रम से सुबह की वॉक के लिए निकले और फिर नहीं लौटे. फौरन एफआईआर दर्ज कराई गई. आज तक पता नहीं चला. रामदेव और बालकृष्ण पर इसके चलते खूब इल्जाम लगे.
9. 2006 में पतंजलि आर्युवेद की स्थापना की रामदेव और बालकृष्ण ने. इसके लिए गोविंद अग्रवाल ने 1 करोड़ दिए और पप्पुल पिल्ली ने 7 करोड़. शुरुआत में दवाई और डेरी प्रॉडक्ट बने. फिर यूके में रहने वाले सरवन और सुनीता पोद्दार ने 50 करोड़ दिए. बैंक ने भी 2007 में 10 करोड़ लोन दिया. उसके बाद बालकृष्ण 94 फीसदी के मालिक बने और बाकी छह फीसदी के मालिक पोद्दार परिवार. समूह ने अगले तीन सालों में 250 करोड़ का निवेश पाया. समूह की नई कंपनियों में रामदेव के भाई रामभरत का भी कुछ मालिकाना हक है.
10. फोर्ब्स के मुताबिक 25600 करोड़ रुपये के मालिक हैं बालकृष्ण. देश के 48वें सबसे अमीर आदमी. 98.5 के मालिक अनलिस्टेड कंपनी में. देखिए उनका सफर कहां से कहां पहुंच गया. नेपाल से भारत आए थे. किशोर वय में. गुरुकुल में. संस्कृत और योग. और आज पूरे देश को कारोबार पढ़ा रहे हैं. उनका और रामदेव का मंत्र इन दो वाक्यों से समझिए.
– हम बाबा हैं, मक्कार नहीं, जो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें
– फ्री में कुछ नहीं बांटूंगा. वर्ना हाथ में कटोरा आ जाएगा. मुनाफा जो कमाऊंगा वो पतंजलि में ही लगाऊंगा.
और अंत में- पतंजलि समर्थक कहते हैं कि बालकृष्ण ने युवावस्था में ही संजीवनी बूटी खोज ली थी. वही मिथकीय बूटी, जिसके सेवन से लक्ष्मण की मूर्छा खुली थी. जब कोई सफल होता है, तो मिथक भी बनने ही लगते हैं. इसे यूं ही समझें.
बरास्ते कौशिक डेका की किताब. ‘द बाबा रामदेव फिनोमिना- फ्रॉम मोक्ष टु मार्केट’ आपको ऑनलाइन साइट अमेज़न पर आसानी से मिल जाएगी. इस किताब की कीमत 206 रुपए है.
‘द बाबा रामदेव फिनोमिना- फ्रॉम मोक्ष टु मार्केट’ का कवर

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