Wednesday

सऊदी अरब का निशाना कौन-कतर या ईरान

खाड़ी देशों का कतर पर आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाना और उसके बाद कतर के साथ राजनयिक संबंधों को समाप्त कर लेना. क्या इसे वाकई आतंकवाद के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता माना जाये या किसी और सोची-समझी रणनीति का हिस्सा.
Katar Die neuen Hochhäuser der Innenstadt von Doha (Picture alliance/AP Photo/K. Jebreili)
व्हाइट हाउस के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप खाड़ी देशों के बीच पैदा हुये तनाव के जल्द समाप्त होने की उम्मीद कर रहे हैं. हाल ही में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र ने कतर के साथ सभी तरह के राजनयिक संबंधों को तोड़ लिये. अमेरिका ने कहा है कि वह उम्मीद करता है कि खाड़ी देश साथ आकर सही दिशा में आगे बढ़ेंगे. हालांकि यह ट्रंप ही थे जिन्होंने मई में अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये रियाद को चुना था और वहां यह जाहिर भी किया कि सऊदी अरब, अमेरिका का समर्थक है. सऊदी अरब में अपने भाषण के दौरान ट्रंप ने सऊदी के कट्टर प्रतिद्वंदी ईरान पर आतंकवाद के समर्थन का आरोप लगाया. ट्रंप ने कहा कि ईरान हथियारों पर पैसा खर्च करता है और आतंकवादियों, लड़ाकों और अन्य उग्रवादी समूहों को प्रशिक्षित करता है. इसके अतिरिक्त, ट्रंप ने इस बात भी जोर दिया था कि अरब राष्ट्रों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी जमीन पर आतंकवादियों को कोई संरक्षण न मिले.
आतंकवाद का समर्थन
ट्रंप के इस बयान के बाद सऊदी अरब, ईरान के खिलाफ नया मोर्चा बनाने के लिये काफी उत्साही था और यह कहना गलत नहीं होगा कि कतर इस नये उत्साह को महसूस करने वाला पहला देश बना. अब सवाल उठता है क्यों? आधिकारिक बयान के मुताबिक दोहा से संबंध खत्म करने की सबसे बड़ी वजह है, उसका इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूह और सऊदी अरब और बहरीन में कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों को समर्थन देना.
सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, बहरीन, मिस्र ने दोहा को खाड़ी क्षेत्र की स्थिरता के लिये खतरा माना है. हालांकि ये काफी स्पष्ट है कि खाड़ी देशों के इस फैसले में आतंकवाद कोई बहुत बड़ा कारण नहीं है बल्कि यह है कि कतर के ईरान के साथ संबंध, सऊदी अरब को हजम नहीं हो रहे.
तेहरान से नजदीकी
यह पूरा मामला कुछ हफ्ते पहले शुरू हुआ, जब कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी ने कथित रूप से ईरान की भूमिका के बारे में सकारात्मक राय व्यक्त की. इसके बाद सऊदी मीडिया ने कतर के विदेश मंत्री की ईरानी रेवॉल्यूशनरी गार्ड के प्रमुख से मुलाकात के बारे में लिखा. इतना ही नहीं कतर ने ईरान में राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाले हसन रोहानी को बधाई भी दी थी. फिलहाल अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप सऊदी अरब के लिये बहुत ही अहम हैं, क्योंकि वह ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति है जिनका मत सऊदी अरब के साथ मेल खाता है. लेकिन पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का रुख इसके विपरीत था और यही कारण था ओबामा कार्यकाल के दौरान तेहरान के साथ परमाणु समझौता किया गया.
पुराने दुश्मन, नये दुश्मन
सालों से रियाद अपने क्षेत्रीय पड़ोसी मुल्क ईरान पर सुन्नी साम्राज्य में हस्तक्षेप कर उसे अस्थिर करने के आरोप लगाता रहा है. सऊदी अरब का आरोप है कि ईरान मध्य पूर्व में क्षेत्रीय विस्तार करना चाहता है. सऊदी अरब को डर है कि ईरान उसके पूर्वी इलाकों में रहने वाले शिया अल्पसंख्यकों को भड़का सकता है, हालांकि यह क्षेत्र सऊदी अरब के तेल कारोबार के लिहाज से भी बहुत अहम है. इस बीच ईरान ने भी इराक और सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध में सक्रिय भूमिका निभाकर अपने पड़ोसियों को चिंता में डाल दिया है और शायद यही कारण है कि सऊदी अरब स्वयं को पहले से ज्यादा घिरा हुआ महसूस कर रहा है. सऊदी अरब अपने निकट क्षेत्रीय सहयोगी संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन पर भरोसा करता रहा है. मिस्र भी वित्तीय मामलों को लेकर बहुत हद तक रियाद पर निर्भर है लेकिन हाल के सालों में तेहरान के साथ मिस्र की नजदीकी ने सऊदी अरब को झुंझला दिया है.
राजनीतिक स्वतंत्रता
करीब 30 लाख की आबादी वाले कतर की राजनीतिक स्वतंत्रता भी रियाद के लिये परेशानी का सबब है. हालांकि दोहा और तेहरान शेख हमद बिन खलीफा अल-थानी के शासन के दौरान साल 1995 से 2013 के बीच एक दूसरे के बेहद करीब आये और दोनों देशों ने एक प्रमुख गैस क्षेत्र पर दावा भी किया, लेकिन आधिकारिक रूप से दोनों सहयोगी नहीं है. इस कारण भी रियाद, दोहा पर निजी हित साधने के आरोप लगाता रहा है क्योंकि सऊदी अरब और कतर दोनों ही गल्फ कॉरपोरेशन काउंसिल के सदस्य हैं लेकिन ईरान इसमें शामिल नहीं है. इन सब के इतर, कतर की मीडिया कंपनी अल-जजीरा ही वह चैनल था जो अरब क्रांति से दुनिया को रूबरू करा रहा था. इसका अरब चैनल खुले आम मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करता नजर आता है और मुस्लिम ब्रदरहुड को सऊदी शासक अपनी सत्ता के लिये खतरा मानते हैं.  
अब क्या?
सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र आदि देशों का कतर से संबंध तोड़ने का फैसला महज एक धमकी नहीं है बल्कि इसका मकसद कतर को घेरना है, जो भोजन जैसी अहम वस्तुओं के लिये भी आयात पर निर्भर करता है. साल 1971 में आजाद हुआ कतर फिलहाल अब तक के सबसे गंभीर कूटनीतिक संकट का सामना कर रहा है. वहीं सऊदी अरब ट्रंप के दौरे से इतना आत्मविश्वास महसूस कर रहा है कि वह अमेरिका के कतर से अपना विशाल हवाई बेस हटाने के बारे में बात कर रहा है. लेकिन अब सवाल यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप इस संकट को लेकर कितने प्रतिबद्ध है.
दियाना होडाली/एए