नई दिल्ली। वेश्यावृति का नाम सुन अमूमन लोग नाक भौंह सिकोड़ने लगते हैं। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो उनको भी इंसान मानते हुए उनके दर्द को समझने या साझा करने की कोशिश करते हैं। अंग्रेजों के शासन के समय बनी वेश्याओं की इस बस्ती का कहानी और इसमें रहने वाली वेश्याओं की कहानी किसी को भी रुला देने वाली है।
तंग गलियों में टिन की छतों के नीचे जिस्म का कारोबार
बांग्लादेश के तंगैल जिले का कांडापारा वेश्यालय अंग्रेजी शासन के दौरान अस्तित्व में आया और धीरे-धीरे बढ़ता गया। बांग्लादेश का वेश्यालय 200 साल पुराना और दूसरा सबसे बड़ा वेश्यालय है। यहां रहने वाली औरतें इन्हीं छोटी-छोटी सीलन भरी अपनी कोठरियों में तमाम उम्र काटती हैं, जहां उनका काम सिर्फ ग्राहक के सामने पेश होना होता है।
2014 में हटाया गया फिर बसा
इस कोठे को 2014 में हटा दिया गया, जिसके बाद यहां रहने वाली औरतों का कोई पुनर्वास ना होने की वजह से उनको काफी परेशानी हुई। इसके बाद एक लोकल एनजीओ की मदद से यह इलाका फिर से बसा और औरतें यहां रहने लगीं।
बाहरी जिंदगी से दूर यही तंग गलियां हैं जिंदगी
ये इलाका शहर के एक तरह से कटा सा है, तंग गलियों को बीच टिन की छत वाली कोठरियां, इन्ही के बीच चाय और दूसरे सामान की छोटी-छोटी दुकानें। और कई दुकानदार हैं।
12 साल की उम्र से ही आ जाती हैं लड़कियां
यहां 12 से 14 साल की उम्र से ही लड़कियां जिस्म के कारोबार में धकेल दी जाती हैं। अमूमन ये लड़कियां तस्करी करके या फिर गरीबी की वजह से यहां तक पहुंचती हैं। जिसके बाद उन्हें कोठे की सीनियर वेश्याएं उन्हें ग्राहकों के सामने पेश करती हैं। जो लड़कियां खरीदी जाती हैं, उनकी कीमत ये सीनियर वेश्याएं इसी तरह से वसूलती हैं। कम उम्र की लड़कियों को इलाके से बाहर नहीं जाने दिया जाता और वो किसी के साथ संबंधों के लिए मना भी नहीं कर सकतीं।
कीमत चुकाकर हो जाती हैं 'आजाद'
जितने पैसे देकर लड़की खरीदी जाती है, वो रकम अमूमन 4-5 साल में उनके पास आए ग्राहकों से वसूल ली जाती है। इसके बाद उन्हें काफी सारे हक दे दिए जाते हैं जैसे वो अगर चाहें तो किसी ग्राहक को नापसंद करने पर मना कर सकती हैं और अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा भी अपने पास रख सकती हैं।
जिंदगी 'नरक' से कम नहीं
इन लड़कियों की जिंदगी नरक से कम नहीं होती। कम उम्र में पहले उन्हें किसी के भी सामने पेश कर दिया जाता है तो गर्भवती हो जाने या मां बनने पर भी उन्हें खासी परेशानी अपने बच्चे को पालने में होती है। एक उम्र के बाद उनको ग्राहक मिलने बंद हो जाते हैं तो रोजी-रोटी की भी संकट इनको आता है क्योंकि बाहर की दुनिया इन्हें नहीं अपनाती।
सरकारों के लिए सड़क, बिजली, पानी तो जैसे इनकी जरूरत ही नहीं
इस इलाके को देखिए तो लगता है कि ये शहर का हिस्सा ही नहीं है। ना यहां पक्की सड़के हैं, ना बिजली-पानी का कोई माकूल इंतजाम। ऊपर से टिन की नीची छतें गर्मी, सर्दी, बरसात हर मौसम में सताती हैं। इस सबके बावजूद ये लड़कियां यहां रहती हैं क्योंकि इनके लिए यही इनकी दुनिया है, बाहर की दुनिया ये देखती ही नहीं। हां बीमारियां भी लड़कियों को अक्सर घेरे रहती हैं लेकिन वो सब इनकी जिंदगी का हिस्सा हो जाता है.(तस्वीरें-वाशिंगटन पोस्ट)
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