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देश के इस राज्य में गर्म सलाखों से किया जाता है मरीजों का इलाज



Raipur: छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग लोहे की गर्म सलाखों से दगवाकर कई बीमारियों का उपचार करा रहे हैं। छत्तीसगढ़िया बोलचाल की भाषा में इसे ‘आंकना’ कहते हैं
 इस तरीके से रोगों का इलाज इलाज करने वाले इसे पूरी तरह कारगर होने का दावा करते हैं, जबकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। रोग से पीड़ित लोग हालांकि उपचार के इस तरीके से आराम मिलने की बात कहते हैं, जबकि डॉक्टर इलाज के इस तरीके को काफी खतरनाक व जानलेवा मानते हैं।
रोगों का इलाज करने के लिए हर गांव में ऐसे वैद्य मिलते हैं:
सूबे के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के हर पांच-दस गांव में एक ऐसा वैद्य मिल जाएगा, जो कथित रूप से आंककर ही कई रोगों का इलाज करता है। इनमें से ज्यादातर नि:शुल्क सेवा देते हैं। कांकेर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर दुधावा मावलीपारा गांव के वैद्य रत्ती सिंह मरकाम के घर हर रविवार सुबह आंककर इलाज किया जाता है। लोग बताते हैं कि वे हंसियानुमा लोहे को गर्म कर उससे लोगों के शरीर के उन हिस्सों को दागते हैं, जहां तकलीफ होती है।
कई शहरों से लोग आते हैं इलाज के लिए:
वे कहते हैं कि वैद्य रत्तीसिंह लकवा, गठिया वात, मिर्गी, बाफूर, अंडकोष, धात रोग, बेमची, आलचा सहित कई अन्य रोगों का इलाज करते हैं। उनके पास छत्तीसगढ़ के साथ ही ओडिशा व महाराष्ट्र से भी लोग आते हैं। हाल ही में टाटानगर जमशेदपुर से भी कुछ पीड़ित इलाज कराने आए थे। वे इस इलाज से आराम मिलने का दावा भी करते हैं। वैद्य रत्तीसिंह ने बताया कि पिता भंवरसिंह मरकाम से उन्होंने यह चिकित्सा पद्धति सीखी है और आज तक नि:शुल्क सेवा दे रहे हैं।
मरीजों के खाने और रहने की भी व्यवस्था:
इसी प्रकार कांकेर के ही सातलोर (पटौद) में राजबाई शोरी भी आंककर इलाज करती हैं। वह कहती हैं कि पीड़ित बिना किसी दबाव के स्वयं उनके पास आते हैं और राहत पाते हैं। उन्होंने बताया कि दूरदराज से आने वाले मरीजों के रहने व खाने की व्यवस्था भी वे अपने घर पर ही करती हैं। वह कहती हैं कि बच्चों का इलाज करते समय उनका दिल भी दुखता है, लेकिन बीमारी दूर करने के लिए ऐसा करना पड़ता है।
इलाज का यह तरीका खतरनाक और जानलेवा:

राजधानी रायपुर के चिकित्सक डॉ. नलनेश शर्मा ने इस संबंध में कहा कि इलाज का यह तरीका बहुत ही खतरनाक व जानलेवा है। यदि आंकने से ही बीमारी ठीक हो जाती तो पीड़ित डॉक्टरों के पास क्यों जाते? उन्होंने कहा कि इस मामले में लोगों को जागरूक होना चाहिए। किसी भी प्रकार की तकलीफ होने पर डॉक्टर के पास जाकर ही इलाज कराना चाहिए। बहरहाल, यह सिर्फ कांकेर जिले के ही बात नहीं है, सूबे के कई और जिलों में भी इसी तरह गर्म सलाखों से दागकर इलाज करने का दस्तूर आज भी जारी है।

अब दोस्त को 'गांडू' नहीं कहता

LGBTQ series part 1: story of a small town boy first encounter with homosexuality



पहली बार होमोसेक्शुऐलिटी के बारे में कुछ सुना था वो ये कि मुखिया जी किसी 12 साल के लड़के को लेकर मंदिर में घुसे रहते हैं. क्या करते हैं ये उन शब्दों में कहा गया. जो कहते हुए स्वत: हमारा वॉल्यूम नीचे चला जाता है. बाद में समझ आया कि इसमें होमोसेक्शुऐलिटी जैसा कुछ न था. ये चाइल्ड अब्यूज था.
तब सेक्स से जुड़ी हमारी जानकारियां बहुत सतही और सपाट शब्दों में होती थीं. हमें ये तो पता चल चुका था कि लड़कियों के पीछे नहीं आगे वाले ‘छेद’ में डालते हैं. पर हिदायत मिली थी कि घर में न बताएं. छोटे से ज्ञान के साथ ये कैसे पचा पाते कि कोई लड़का किसी दूसरे लड़के के ‘पीछे वाले छेद’ में डाल रहा है. सही-गलत की तो बात ही छोड़िए. हमें डर था कि हमने इस बारे में बात की है घर में यही पता चल गया तो पिट जाएंगे. होमोसेक्शुऐलिटी से जुड़ा पहला अनुभव यही था कि ये काम गंदे लोग करते हैं और इस बारे में किसी से बात नहीं करनी है .

आठवीं-दसवीं में लड़के गर्ल्स हॉस्टल की बातें करते. तब पता चला लड़कियां भी ऐसा कुछ करती हैं. ये तो और गलत था. सोचा कि लड़कियों को कभी हॉस्टल जाना ही नहीं चाहिए, बिगड़ जाती हैं. रिश्तेदारियों में आने वाली वो लड़कियां जो कहीं हॉस्टल में रहती थीं उनके बारे में सोच बदल चुकी थी. लेस्बियन का खाका खिंच चुका था, वो लड़कियां जो वक़्त के पहले सब सीख जाती हैं और मजे के लिए दूसरी लड़कियों का सहारा लेती हैं.
फिर कॉलेज आया ‘होमो’ शब्द सीखा. किसी दोस्त का नाम योगेश हुआ तो उस पर योGayश वाले जोक बना हंसते. Wheat की हिंदी पूछ ठट्ठा मारते. बिन मूंछों या मटककर चलने वाले लड़कों का बाथरूम में घुसना मुहाल करते. ये हमारी गलती नहीं है. ये उन तमाम लोगों की सोच है जिनने बॉबी डार्लिंग को मेल बॉडी पर गिरते देख समलैंगिकता को समझा था. हमारे लिए वो हंसने की चीज होते थे.
तभी बसों में उन जैसे अंकल भी मिलने लगे जिनका हाथ गलती से उठी टी-शर्ट से होकर पेट सहलाता. या गायत्री परिवार के सम्मेलन से लौट रहे वो अंकल जिनका हाथ RAC की सीट पर आधे सोए-सोए जाने क्यों लोअर में घुस-घुस जाता. अब तक होमोसेक्शुऐलिटी का मतलब मेरे लिए यही था कि ये लौंडेबाज बूढों के शौक हैं, या जनाना जैसे दिखने वाले लड़कों के जिनमें मर्दानगी नहीं होती. और उन्हें ये बुरी आदतें लग जाती हैं.
Source: Reuters
फिर एक दोस्त कुछ बताता है, जिसे मैं प्यार करता हूं, रिस्पेक्ट करता हूं, जो जिंदगी में बहुत गहरे तक दखल रखता है. मैं स्वीकार नहीं कर पाता हूं कि वो गे हो सकता है. तमाम कनफ्लिक्ट होते हैं. लगता है ये तो हट्टा-कट्टा है. हैंडसम सा है. गे होने के तमाम स्टीरियोटाइप टूटने लगते हैं. उनके लिए नजरिया बदलने लगता है. उनके बारे में ढंग से जानना जरुरी लगता है. बहुत नहीं पर इतना तो जरुर कि ‘गांडू’ या ‘मारना-मरवाना’ जैसी बातें मुंह से उतर जाएं.
उम्र बढ़ने के साथ आस-पास ऐसे लोग बढ़ने लगते हैं. इस एक फैक्ट कि वो होमोसेक्शुअल हैं, बाकी सब सामान्य लगता है उनमें. फिर एक दिन ये फैक्ट भी मायने नहीं रखता. समझ आने लगता है कि जैसे कोई उल्टे हाथ से खाना खा रहा है वैसा ही गे, लेस्बियन होना भी है. आप कहकर या मारकर नहीं छुड़ा सकते, ये कोई आदत नहीं है. वो हैं ही ऐसे. और इसमें कोई बुराई नहीं है. मुखिया जी में हिम्मत नहीं थी. उनकी मेहरिया उनको शादी के कुछ दिन बाद छोड़कर चली गई थी. वो नहीं कह पाए कि वो क्या हैं. उसके बाद जो वो करते हैं वो जरुर गलत है.
अब किसी लड़के को मुंह पर हाथ रख हंसते देख अजीब नहीं लगता. पहले किसी के गे होने का शक होते ही दूर भाग उठता था. एक बार फेसबुक इनबॉक्स में किसी ने बड़े प्यार से बात कर दी थी. उसे ब्लॉक कर भाग गया था. हम होमोफोबिक माहौल में रहते हैं न. करण जौहर पर बने चुटकुलों पर हंस खुद को विटी समझते हैं. ये नहीं जानते कि ये भेदभाव है. और ये भेदभाव जाने कितने ही लोगों को बंद कमरों में रोने और घुट-घुट के मरने पर मजबूर करता है.
लोगों को ग्रुप्स में बांटने वाली भाषा में कहें तो मैं स्ट्रेट हूं. पर मैं ये इसलिए नहीं कहता कि खुद को अपने गे या लेस्बियन दोस्तों से अलग मानता हूं. इसलिए कहता हूं कि अब मैं होमोफोबिक नहीं हूं. कुछ दोस्त हैं जो गे हैं. उनसे मिलने में शर्म नहीं आती. किसी तरह का गर्व भी नहीं होता. नॉर्मल लगता है. बिलकुल वैसे ही जैसे तमाम ‘स्ट्रेट’ दोस्तों के मिलने पर लगता है. चरते रहते हैं. मसखरी में फ्लर्ट भी करते हैं. गाली भी खाते हैं लेकिन अब दोस्तों के लिए ‘गांडू’ नहीं निकलता. अब समझ आ गया है ‘गांडू’ गाली नहीं है.
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ये दी लल्लनटॉप की LGBTQ सीरीज का पहला आर्टिकल है. LGBTQ का मतलब है लेस्बियन, गे, बायसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर. यानी इस दुनिया के वो लोग जो ‘नॉर्मल’ की परिभाषा में फिट नहीं होते, उनका एक टुकड़ा. लेकिन वो परिभाषाएं ही क्या जो कभी बदल न सकें. और वो लोग ही क्या जो जिंदा होने के लिए परिभाषाओं में फिट होना चाहें. बस ऐसे ही कुछ लोगों को हम आप तक पहुंचाएंगे आने वाले दिनों में. दी लल्लनटॉप पढ़ते रहिये.



 

योगी सरकार ने 12वीं पास के लिए निकाली बंपर सरकारी वैकेंसी, पढ़िए बड़ी खबर

yogi adityanath


योगी सरकार ने 12वीं पास के लिए निकाली बंपर सरकारी वैकेंसी, पढ़िए बड़ी खबर

लखनऊ. अगर आप पुलिस में भर्ती होने का सपना देखते हैं तो फिर आपका यह सपना जल्द ही पूरा होने वाला है। उत्तर प्रदेश में पुलिस बल की भारी कमी के बीच कानून-व्यवस्था को और चुस्त बनाने के लिए प्रदेश की योगी सरकार ने कई पदों पर भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं। विभाग द्वारा बाकायदा इसके लिए विज्ञापन जारी कर इच्छुक अभ्यर्थियों के आवेदन मांगें गए हैं।
पदों का विवरण : कंप्यूटर ऑपरेटर (ग्रेड-ए)
कुल पद : 666
आयु सीमा : न्यूनतम 18 वर्ष और अधिकतम 28 वर्ष होनी चाहिए
शैक्षणिक योग्यता : मान्यताप्राप्त संस्थान से भौतिक विज्ञान और गणित विषय के साथ 12वीं पास होना जरूरी।
अंतिम तिथि : 15 जून, 2017
ऐसे करें आवेदन: इच्छुक उम्मीदवार संबंधित वेबसाइट पर क्लिक करके सावधानीपूर्वक ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया पूरी करें। उम्मीदवार आगे की चयन प्रक्रिया के लिए ऑनलाइन आवेदन पत्र का प्रिंटआउट सुरक्षित रख लें।
सैलरीः 21,000 रुपये प्रति माह
आवेदन शुल्कः सभी वर्गों के लिए 400 रुपये
संबंधित वेबसाइट का पता: www.uppbpb.gov.in

200 साल पुराना वेश्यालय, 12 साल की उम्र में लड़कियों को बनाया जाता है वेश्या

नई दिल्ली। वेश्यावृति का नाम सुन अमूमन लोग नाक भौंह सिकोड़ने लगते हैं। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो उनको भी इंसान मानते हुए उनके दर्द को समझने या साझा करने की कोशिश करते हैं। अंग्रेजों के शासन के समय बनी वेश्याओं की इस बस्ती का कहानी और इसमें रहने वाली वेश्याओं की कहानी किसी को भी रुला देने वाली है।
तंग गलियों में टिन की छतों के नीचे जिस्म का कारोबार



तंग गलियों में टिन की छतों के नीचे जिस्म का कारोबार

बांग्लादेश के तंगैल जिले का कांडापारा वेश्यालय अंग्रेजी शासन के दौरान अस्तित्व में आया और धीरे-धीरे बढ़ता गया। बांग्लादेश का वेश्यालय 200 साल पुराना और दूसरा सबसे बड़ा वेश्यालय है। यहां रहने वाली औरतें इन्हीं छोटी-छोटी सीलन भरी अपनी कोठरियों में तमाम उम्र काटती हैं, जहां उनका काम सिर्फ ग्राहक के सामने पेश होना होता है।
2014 में हटाया गया फिर बसा

2014 में हटाया गया फिर बसा

इस कोठे को 2014 में हटा दिया गया, जिसके बाद यहां रहने वाली औरतों का कोई पुनर्वास ना होने की वजह से उनको काफी परेशानी हुई। इसके बाद एक लोकल एनजीओ की मदद से यह इलाका फिर से बसा और औरतें यहां रहने लगीं।
 बाहरी जिंदगी से दूर यही तंग गलियां हैं जिंदगी

बाहरी जिंदगी से दूर यही तंग गलियां हैं जिंदगी

ये इलाका शहर के एक तरह से कटा सा है, तंग गलियों को बीच टिन की छत वाली कोठरियां, इन्ही के बीच चाय और दूसरे सामान की छोटी-छोटी दुकानें। और कई दुकानदार हैं।
12 साल की उम्र से ही आ जाती हैं लड़कियां

12 साल की उम्र से ही आ जाती हैं लड़कियां

यहां 12 से 14 साल की उम्र से ही लड़कियां जिस्म के कारोबार में धकेल दी जाती हैं। अमूमन ये लड़कियां तस्करी करके या फिर गरीबी की वजह से यहां तक पहुंचती हैं। जिसके बाद उन्हें कोठे की सीनियर वेश्याएं उन्हें ग्राहकों के सामने पेश करती हैं। जो लड़कियां खरीदी जाती हैं, उनकी कीमत ये सीनियर वेश्याएं इसी तरह से वसूलती हैं। कम उम्र की लड़कियों को इलाके से बाहर नहीं जाने दिया जाता और वो किसी के साथ संबंधों के लिए मना भी नहीं कर सकतीं।
कीमत चुकाकर हो जाती हैं 'आजाद'

कीमत चुकाकर हो जाती हैं 'आजाद'

जितने पैसे देकर लड़की खरीदी जाती है, वो रकम अमूमन 4-5 साल में उनके पास आए ग्राहकों से वसूल ली जाती है। इसके बाद उन्हें काफी सारे हक दे दिए जाते हैं जैसे वो अगर चाहें तो किसी ग्राहक को नापसंद करने पर मना कर सकती हैं और अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा भी अपने पास रख सकती हैं।
जिंदगी 'नरक' से कम नहीं

जिंदगी 'नरक' से कम नहीं

इन लड़कियों की जिंदगी नरक से कम नहीं होती। कम उम्र में पहले उन्हें किसी के भी सामने पेश कर दिया जाता है तो गर्भवती हो जाने या मां बनने पर भी उन्हें खासी परेशानी अपने बच्चे को पालने में होती है। एक उम्र के बाद उनको ग्राहक मिलने बंद हो जाते हैं तो रोजी-रोटी की भी संकट इनको आता है क्योंकि बाहर की दुनिया इन्हें नहीं अपनाती।
सरकारों के लिए सड़क, बिजली, पानी तो जैसे इनकी जरूरत ही नहीं

सरकारों के लिए सड़क, बिजली, पानी तो जैसे इनकी जरूरत ही नहीं

इस इलाके को देखिए तो लगता है कि ये शहर का हिस्सा ही नहीं है। ना यहां पक्की सड़के हैं, ना बिजली-पानी का कोई माकूल इंतजाम। ऊपर से टिन की नीची छतें गर्मी, सर्दी, बरसात हर मौसम में सताती हैं। इस सबके बावजूद ये लड़कियां यहां रहती हैं क्योंकि इनके लिए यही इनकी दुनिया है, बाहर की दुनिया ये देखती ही नहीं। हां बीमारियां भी लड़कियों को अक्सर घेरे रहती हैं लेकिन वो सब इनकी जिंदगी का हिस्सा हो जाता है.(तस्वीरें-वाशिंगटन पोस्ट)

मंदसौर फायरिंग में जो 5 लोग मारे गए, उनके पास न जमीन थी और न तकदीर



मंदसौर में पुलिस की गोली से मरने वाले 5 लोगों की पहचान हो चुकी है। इन लोगों के पास ना तो कोई जमीन थी और ना ही कोई नौकरी.. एक 12वीं में पढ़ रहा था तो एक भारतीय सेना का जवान बनना चाहता था।
पुलिस की गोली ने जिन 5 लोगों की जान ले ली, उनमें से किसी के नाम जमीन का एक टुकड़ा तक नहीं था। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार मारे गए उन 5 लोगों में 19 साल का नौंवी क्लास का एक छात्र था, जिसे बायोलॉजी से बेहद लगाव था। दूसरा 23 साल का एक बेरोजगार था, जिसकी दो महीने पहले ही शादी हुई थी और वो आर्मी जॉइन करना चाहता था। तीसरा 30 साल का एक मजदूर था। चौथा और पांचवा 22 और 44 साल के दो शख्स थे, दोनों दूसरे के खेतों में काम किया करते थे, उनके नाम जमीन का एक छोटा टुकड़ा भी नहीं था। मारे गए इन 5 लोगों के परिवार वाले आज सवाल पूछ रहे हैं। आखिर इन लोगों को पुलिस की गोली का शिकार क्यों होना पड़ा?
इस आंदोलन का सबसे दर्दनाक पहलू तो ये है कि मारे गए वो 5 लोग किसान आंदोलन की आवाज थे ही नहीं। खेती किसानी के लिए अपनी जिंदगी की आहुति देने वाले इन 5 लोगों के नाम तो जमीन का एक टुकड़ा तक दर्ज नहीं था। सरकार अगर किसानों का कर्ज माफ कर देती तो अभिषेक दिनेश पाटीदार की जिंदगी पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। 9वीं क्लास में पढ़ने वाला अभिषेक दिनेश पाटीदार मंदसौर नीमच हाइवे के पास बसे गांव बारखेड़ा पंथ का रहने वाला था। उसका शव मिला तो परिवार और गांववालों ने मिलकर हाइवे पर जाम लगा दिया। जाम तुड़वाने कलेक्टर साहब पहुंचे तो उनके साथ हाथापाई तक हुई।
अभिषेक के परिवार वाले कहते हैं कि उनके लड़के का आंदोलन की हिंसा से कोई लेना देना नहीं था। अभिषेक के पिता दिनेश कहते हैं कि उन्होंने अपने बेटे को आंदोनकारियों के नजदीक जाने और पथराव करने से मना किया था। परिवार वाले कहते हैं कि वो सिर्फ नारेबाजी कर रहा था, फिर उसे पुलिस ने क्यों मारा? उनका आरोप है कि अभिषेक को बिल्कुल नजदीक से गोली मारी गई थी। एक गोली पेट में लगी और एक कंधे पर।अभिषेक भीड़ का हिस्सा था। उस भीड़ में किसान भी थे, मजदूर भी, लड़के-बच्चे भी और तमाशबीन भी। गोलीबारी से एक दिन पहले बंदी को लेकर किसान और व्यापारियों में झड़प हुई। दूसरे दिन दोनों पक्ष सड़क पर एकदूसरे से भिड़ गए। किसान कहते हैं कि व्यापारियों की आड़ लेकर पुलिस वालों ने खुलेआम फायरिंग की। पुलिस कहती है कि आंदोलनकारी पुलिस स्टेशन में आग लगाने जा रहे थे, मजबूरन उन्हें रोकने के लिए फायरिंग करनी पड़ी।
पूनमचंद उर्फ बब्लू जगदीश पाटीदार किसान आंदोलन में हिस्सा ले रहा था। तकरावड गांव के रहने वाले पूनमचंद के पिता की 2016 में मौत हो गई थी। उसे बीएससी की पढ़ाई छोड़कर अपनी 7 बीघे की खेती पर ध्यान देना पड़ा। हालांकि जमीन का टुकड़ा अभी तक उसके नाम पर नहीं था। पूनमचंद अपने दोस्तों के साथ आंदोलन में शामिल हुआ था। परिवार और दोस्त आरोप लगा रहे हैं कि पूनमचंद उस वक्त पानी पी रहा था, जब उसे पुलिस की गोली लगी। दोस्त कहते हैं कि उन्हें अंदेशा तक नहीं था कि पुलिस गोली चला देगी। पूनमचंद की बेवा के पास पूरी जिंदगी पड़ी है और आगे सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा है।
मारे गए लोगों में चैनराम गनपत पाटीदार भी है। पिछली 29 अप्रैल को ही इसकी शादी हुई थी। पिता के पास दो बीघे से भी कम जमीन है। उसके पिता कहते हैं कि बेटा का सपना सेना में जाने का था। हर बार सेना की लिखित परीक्षा में पास हो रहा था। लेकिन आई टेस्ट में फेल हो जा रहा था। परिवार के पास कभी अच्छी खासी खेती हुआ करती थी। लेकिन एक डैम के निर्माण में सारी खेती चली गई और मुआवजे के नाम पर बड़ी ही छोटी रकम मिली। परिवार को लगता चैनराम से ही सारी उम्मीदें लगी हुई थी। सारी उम्मीदों की पुलिस के हाथों हत्या हो गई।
लोध गांव का रहने वाला सत्यानारायण मांगीलाल मजदूरी करके अपने और अपने परिवार का पेट पाल रहा था। रोज के 200 रुपए की मजदूरी में बड़ी मुश्किल से जिंदगी कट रही थी। कहने को परिवार के पास 6 बीघे की जमीन थी लेकिन वो जमीन भी परिवार के नाम पर नहीं थी। उसके परिवार के लोग कहते हैं कि वो तो रैली देखने के नाम पर घर से निकला था। पता नहीं कैसे पुलिस की गोली का शिकार बन गया।

कन्हैयालाल धुरीलाल पाटीदार भी पुलिस की गोली का शिकार होकर मारा गया। उसके दो बच्चे हैं। कन्हैयालाल और उसके तीन भाइयों के पास 7 बीघे की जमीन है लेकिन उनके नाम पर नहीं। परिवार कह रहा है कि वो निंश्चित था कि कुछ गलत नहीं होगा। पड़ोसी कहते हैं कि पुलिस ने उसे बातचीत के लिए बुलाया था लेकिन नजदीक जाने पर गोली मार दी।
 

इस प्रोफेसर ने सेना के लिए बनाया नया बुलेट प्रूफ जैकेट.. बचेंगे 20000 करोड़



सेना का सामना हमेशा आतंकियों से होता है। इसके लिए बुलेट प्रूफ जैकेट होना बहुत जरूरी है। कई बार बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं होने की वजह से हमारे जवानों की जान चली जाती है।
सेना में बुलेटप्रूफ जैकेट की कमी को दूर करने के लिए भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर शांतनु भौमिक एक ऐसी तकनीक लेकर आएंगे जिससे सेना को सालाना 20,000 करोड़ रुपये तक की बचत होगी। रक्षा मंत्रालय की कमिटी ने इस जैकेट के इस्तेमाल पर मुहर लगा दी है। पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीक से बनी यह जैकेट अल्ट्रा मॉडर्न लाइटवेट थर्मो-प्लास्टिक टेक्नॉलजी से बनी है। इसका निर्माण प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया प्रॉजेक्ट के अंतर्गत होगा। प्रधानमंत्री कार्यालय की हरी झंडी मिलने के बाद इसका निर्माण शुरू कर दिया जाएगा।
डीआरडीओ और रक्षा मंत्रालय के सहयोग से 70 सालों सें पहली बार आर्मी के लिए इस तरह से देशी तकनीक से बुलेटप्रूफ जैकेट का निर्माण होने जा रहा है। अभी भारत अपने सुरक्षा बलों के लिए अमेरिका से जैकेट आयात करता है। एक जैकेट की कीमत अभी 1.5 लाख रुपये तक आती है,लेकिन शांतनु भौमिक के इस जैकेट की कीमत मात्र 50,000 रुपये होती है। इस तरह भारत सरकर इन जैकेटों की खरीद पर भारत सरकार सलाना 20,000 करोड़ रुपये बचा पाएगी।
वर्तमान में सुरक्षा बलों के द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे जैकेट का वजन 15 से 18 किलो तक होता है, लेकिन इस मॉडर्न जैकेट का वजन बस 1.5 किलोग्राम के आसपास होगा। इसके अंदर कार्बन फाइबर की लेयर चढ़ी है जुसकी वजह से यह 57 डिग्री तक के तापमान में काम करेगा।

प्रफेसर शांतनु भौमिक कोयंबटूर अमृता यूनिवर्सिटी में एयरो स्पेस इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रमुख हैं। उन्हें अपनी इस नई आविष्कार से काफी उम्मीदें हैं। सेना के पूर्व डेप्युटी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ले. जनरल सुब्रत साहा को इस प्रॉजेक्ट को शुरू करने के लिए उन्होंने धन्यवाद दिया। उन्होंने अपनी इस उपलब्धि को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को समर्पित किया है।
 

भूत का दिल युवती पर आया और आगे की कहानी उड़ा देगी आपके होश





आपके सामने कर्इ बार ऐसे मामले आ जाते हैं कि जिनके बारे में सुनकर ही आपका सिर घुमने लगता है। आप सोचते हैं कि भला यह कैसे हो सकता है? ऐसी ही एक घटना सामने आयी है।
 जहां पर एक भूत ने 26 साल की युवती से दिल लगा बैठा और फिर उसके घर तक आ गया। बताया जा रहा है कि युवती के साथ भूत ने संबंध बनाए और उसके बाद लड़की गर्भवती हो गर्इ। इसके बाद उसने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। 
ये बात यहीं पर खत्म नहीं होती है। इसके बाद भूत बच्चों को लेकर फरार हो जाता है और अब मां उन्हें ढूंढ रही है। उत्तराखंड की रहने वाली युवती का ये मामला सुनकर हर कोर्इ हैरान रह जाता है। साथ ही कोर्इ भी व्यक्ति इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहा है। 

इस मामले के बारे में लोगों को उस वक्त पता चला जब युवती ने थाने पहुंचकर पुलिसकर्मियों से अपने बच्चों को ढूंढने की गुहार लगार्इ। पुलिस के अनुसार, ये युवती काफी पढ़ी लिखी है और अंग्रेजी बोलती है। युवती ने पुलिस को बताया कि वह इंजीनियरिंग की छात्रा है। इस मामले में पुलिस का कहना है कि युवती के पास एक डायरी है जिसमें उसने अपनी आपबीती लिख रखी है।
 

सेना में निकली बंपर वैकेंसी, अंबाला में 22 जून को होगी भर्ती




Ambala: देश की सेवा करने और सेना में भर्ती होने के लिए युवा क्या-क्या नहीं करते। हरियाणा के अंबाला में 22 जून से सेना की भर्ती हो रही है।
इस दौरान फर्जीवाड़े से बचने के लिये कड़े इंजताम किए गए हैं। सेना ने एक बयान में कहा है कि भर्ती प्रक्रिया में शामिल होने के लिये युवाओं के पास आधार कार्ड होना जरूरी है।
हाल ही में सेना में भर्ती होने के लिए हरियाणा में बीस युवाओं ने जहां फर्जी सर्टिफिकेट दिए थे, जिसके बाद सेना ने आधार कार्ड अनिवार्य करने का फैसला किया है। सेना में भर्ती होने के लिए फर्जीवाड़ा, जाली दस्तावेज़ों और अपने धर्म तक को बदल डालने वाली लिस्ट में अब तक अंबाला में 27 युवाओं पर मामला दर्ज किया जा चुका है। अंबाला पुलिस बाकी बचे लोगों पर भी एफ.आई.आर दर्ज करने की कार्रवाई कर रही है।  
सेना भर्ती बोर्ड अंबाला छावनी के डायरेक्टर कर्नल विक्रम सिंह की मानें तो इस बार अंबाला में 22 जून से शुरू होने वाली आर्मी भर्ती रेली में ऐसे फर्जीवाड़ों को रोकने के लिए कई सख्त कदम उठाए जाएंगे। भर्ती में आए युवाओं की सुविधा और गर्मी को ध्यान रखते हुए और भी कई मापदंड अपनाए जाएंगे। डायरेक्टर आर्मी भर्ती अंबाला छावनी ने बताया की इस बार 22 जून से होने वाली ये आर्मी रैली अंबाला के मुलाना में स्थित मुलाना यूनिवर्सिटी में होगी।  

गर्मी को देखते हुए सुबह 2 बजे ही रैली स्थल के गेट खोल दिए जाएंगे और सुबह 5 बजे गेट बंद कर दिए जाएंगे। इस बात का भी ख्याल रखा जाएगा कि अगले दिन होने वाला मेडिकल एग्जाम भी उसी दिन हो जाए और बच्चे अपने घर जा सकें। आर्मी भर्ती रेली में ख़ास बात यह रहेगी कि सभी युवाओं का आधार कार्ड देखा जाएगा ताकि भर्ती में आए युवाओं की असली पहचान हो सके। फर्जीवाड़े पर अंकुश लगाने के लिए बिना आधार कार्ड के किसी भी परीक्षार्थी को इस बार प्रवेश नहीं देने का भी फैसला लिया गया है।  

चीनी राष्ट्रपति ने देखी 'दंगल', PM मोदी से कहा- शानदार फिल्म है


NEW DELHI: SCO समिट में भारत और चीन के बीच बातचीत में मिठास नजर आई है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बताया कि उन्होंने फिल्म फिल्म दंगल देखी और फिल्म उन्हें काफी पसंद आई है।
5 मई को चीन में रिलीज हुई दंगल ने चीनी फिल्म इंडस्ट्री के कई सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं। फिल्म ने अब तक 1,100 करोड़ कमाए हैं। यह फिल्म चीन में 1 बिलियन युआन (147 मिलियन अमेरिकी डॉलर) कमाने वाली 33वीं फिल्म बन गई है। हालांकि चीन में अब भी 7,000 से ज्यादा स्क्रीन पर इसका प्रदर्शन हो रहा है।
शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि दंगल फिल्म चीन में अच्छा कर रही है और उन्होंने खुद यह फिल्म देखी है। विदेश सचिव एस जयशंकर ने शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन के इतर दोनों देशों के नेताओं के बीच बातचीत के बाद यह जानकारी दी। भारत और पाकिस्तान को शुक्रवार को शंघाई सहयोग संगठन की पूर्ण सदस्यता मिली। सूत्रों के मुताबिक दोनों नेताओं के बीच 'वन बेल्ट वन रोड' को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई।
दूसरी ओर दंगल चीन में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली गैर हॉलीवुड फिल्म बन गई है। फिल्म अभिनेता आमिर खान ने हाल ही में कहा था कि उन्हें उम्मीद थी कि फिल्म चीन में पसंद की जाएगी, लेकिन इतनी बड़ी सफलता की उम्मीद नहीं थी। खान ने कहा, 'मैं हमेशा से मानता था कि क्रिएटिव चीजों के लिए भाषा कोई बाध्यता नहीं होती और चीन में दंगल की सफलता ने यह साबित कर दिया है।'