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रिक्शे वालों को नसीब ही नहीं हुआ सुकून और ठिकाना






आजमगढ़. गरीबों के हक पर अमीरों का कब्जा होना कोई नई बात नहीं है लेकिन अगर यह काम जिला के आला अधिकारियों के सामने हो और वह मौन साधे रहें तो यह थोड़ा अटपटा जरूर लगता है। सुनने वालों को शायद विश्वास न हो कि ऐसा भी हो सकता है लेकिन यह सच है।



डीएम कार्यालय से लगभग 25 मीटर, एसपी कार्यालय से 150 मीटर, सीडीओ कार्यालय से 250 मीटर व पुलिस चौकी से मात्र 5 मीटर दूरी पर निर्मित रिक्शा स्टैण्ड पर वर्षों से नेताओं का कब्जा रहा है और आज भी होता है। मजेदार बात यह है कि धरना-प्रदर्शन के दौरान अधिकारी ज्ञापन लेने भी यहां जाते हैं लेकिन आज तक इनके दिमाग में यह बात नहीं आयी कि आखिर रिक्शा स्टैण्ड का उद्देश्य क्या है। सिपाही सड़क किनारे रिक्शा खड़ा होने पर रिक्शा चालकों को पीटते हैं लेकिन इस विभाग ने भी इनका हक दिलाने के बारे में कभी नहीं सोचा। सब मिलाकर रिक्शा चालकों के लिए बना रिक्शा स्टैण्ड राजनीतिक का अखाड़ा बनकर रह गया है।



कलेक्ट्रेट चौराहे के दक्षिण पुलिस चौकी के सामने रिक्शा स्टैण्ड के लिए जमीन लम्बे समय से आवंटित थी। यहां रिक्शा चालकों के लिए एक बरामदा नुमा हाल भी था जो देखरेख के अभाव में काफी जर्जर हो गया था। दुर्घटना की आशंका को देखते हुए नगर पालिका ने एक प्रस्ताव तैयार किया और डूडा ने एनएसडीपी योजना के तहत वर्ष 2002 में रिक्शा स्टैण्ड और प्रथम तल पर रैन बसेरा बनाया। 27 दिसम्बर 2002 को तत्कालीन प्रमुख सचिव पंचायतीराज हरीश चन्द्रा ने इसका शिलान्यास किया। भवन बनकर तैयार हुआ जिसका उद्ïघाटन 23 अप्रैल 2003 को नगर विकास मंत्री लालजी टण्डन द्वारा किया गया। नीचे स्टैण्ड व ऊपर हाल बनवाने में 8.17 लाख रुपये लागत आयी। इसके पीछे उद्देश्य यह था कि गरीब रिक्शा चालक नीचे स्टैण्ड में रिक्शा खड़ा करेंगे और ऊपर हाल में सोयेंगे। इससे इनका रिक्शा सुरक्षित रहेगा और रात गुजारने के लिए छत मिल जायेगी जिसका उस समय शुल्क पांच रुपये प्रतिदिन निर्धारित किया गया।



इसे विडम्बना ही कहेंगे कि रिक्शावान यहां फटक भी नहीं पाये और रिक्शा स्टैण्ड पर नेताओं का कब्जा पहले की तरह से बरकरार रहा। हालत यह है कि छोटे-मोटे धरना से लेकर सभा तक और अनशन तक के लिए इसका प्रयोग होता है। सामान्य दिनों में नेता अपना कार्यक्रम करते हैं। छुट्टी के दिनों में दुकानदार अपना सामान रखते हैं। जिस दिन धरना-प्रदर्शन या सभा नहीं होती, उस दिन यह मोटरसाइकिल स्टैण्ड के काम आता है लेकिन आज तक किसी अधिकारी ने इसके तरफ ध्यान नहीं दिया।
नगरपालिका सूत्रों की माने तो कभी किसी रिक्शे वाले ने 5 रुपये फीस के डर से रहने के लिए मांग नहीं की। सवाल यह है कि हाल के चैनल गेट में सीढ़ी के पास हमेशा ताला बंद रहता है। अगर रिक्शा वालों की जरूरत भी हो तो वह हाल तक पहुंचेगा कैसे और पैसा कहां जमा करेगा। वहीं रिक्शा चालक अनिरूद्ध, राजेश, घुरहू, मन्ती आदि का कहना है कि नगरपालिका के लोग झूठी कहानियां गढते है। स्टैंड पर नगरपालिका अध्यक्ष के खास का ताला बंद है। लोग उन्हें वहां फटकने भी नहीं देते है। मजबूरन वे खुले आसमान के नीचे रात गुजारते है।

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