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दिल्ली में कमल खिलाने के लिए 'आप' ने दिया है पूरा साथ



नई दिल्ली। दिल्ली के निकाय चुनावों के नतीजे सामने आने के बाद एक बार फिर से साफ हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता लोगों के बीच बरकरार है। जिस तरह से उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा  

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ने प्रचंड जीत की उसके बाद दिल्ली के निकाय चुनाव पार्टी के लिए सबसे बड़ी परीक्षा थी, क्योंकि यहां भाजपा का मुकाबला आम आदमी पार्टी से था, जोकि यहां सत्ता में है और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीती थी। इस लिहाज से भाजपा की दिल्ली के निकाय चुनाव में जीत काफी अहम है।

भाजपा ने चुनाव में जीत के बाद संबित पात्रा ने जीत का जश्न नहीं बनाने की बात की है, पार्टी ने इस जीत को सुकमा में शहीद हुए जवानों की चरणों में अर्पित किया है। पात्रा ने कहा कि केजरीवाल बदलाव की राजनीति को लेकर आए थे, लेकिन अब घर नहीं चाहिए, गाड़ी नहीं चाहिए, से लेकर सबसे बड़ा घर लेंगे, सबसे बड़ी गाड़ी ले लेंगे पर आ गई है। लेकिन यहां यह देखना काफी दिलचस्प है कि आप की इस बड़ी हार के पीछे का क्या कारण है और कैसे भाजपा ने आप की रणनीति को ध्वस्त कर दिया।


मोदी लहर दिल्ली के निकाय के इतिहास में ही शायद यह कभी हुआ होगा जब चुनाव प्रधानमंत्री के नाम पर लड़ा गया है। इस चुनाव में भी पीएम मोदी की लोकप्रियता को भाजपा ने भुनाने की कोशिश की। दिल्ली के चुनाव में स्थानीय मुद्दों के साथ उन तमाम मुद्दों पर चर्चा हुई जिसका निकाय से कोई लेना देना नहीं था। इस चुनाव में नोटबंदी जैसे मुद्दों को भुनाया गया। पार्टी के लिए नरेंद्र मोदी आज भी सबसे लोकप्रिय चेहरा बने हुए हैं और अभी भी पार्टी के लिए वह एक लोकप्रिय चेहरा बने हुए हैं।


मनोज तिवारी की रणनीति दिल्ली से भाजपा सांसद मनोज तिवारी को दिल्ली के निकाय चुनावों की जिम्मेदारी दी गई थी और इस जिम्मेदारी को मनोज तिवारी ने हाथो हाथ लिया और प्रचार से लेकर पार्टी की रणनीति को बनाने में अपनी पूरी ताकत झोंकी। मनोज तिवारी ने ना सिर्फ हर जगह खुद प्रचार अभियान को आगे बढ़ाया बल्कि खुद दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों में लोगों के बीच पहुंचकर पार्टी के लिए वोट मांगने का काम किया, जिसका फायदा पार्टी को नतीजों के रूप में देखने को मिल रहा है।


बड़े नेताओं ने केजरीवाल से किया किनारा जिस तरह से भाजपा को बिहार के चुनाव में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था उसके बाद पार्टी ने बड़ा सबक लेते हुए दिल्ली के निकाय चुनाव में अपनी रणनीति में बदलाव किया और तमाम बड़े नेताओं को चुनाव प्रचार में झोंकने की बजाए स्थानीय नेताओं को इसकी जिम्मेदारी दी। आप मुखिया अरविंद केजरीवाल के तमाम बयानों और आरोपों पर किसी बड़े नेता ने पलटवार करने की बजाए स्थानीय नेताओं को आगे किया। इसका सीधा फायदा पार्टी को यह हुआ कि केजरीवाल को मीडिया की सुर्खिया नहीं हासिल हुई। किसी भी बड़े नेता ने केजरीवाल पर विवादित बयान देने से दूरी बनाई।
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मौजूदा पार्षदों को नहीं दिया टिकट भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के चुनाव में जो सबसे बड़ा रणनीतिक बदलाव किया वह यह कि एक भी मौजूदा पार्षद को पार्टी ने टिकट नहीं दिया। पार्टी इस बात को जानती थी कि मौजूदा पार्षदों को लेकर लोगों के बीच कुछ हद तक नाराजगी थी, ऐसे में पार्टी ऐसी कोई भी वजह नहीं छोड़ना चाहती थी जिसका लाभ आम आदमी पार्टी उठा सके। पार्टी ने 270 में से सभी 270 नए उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिसके चलते 


नकारात्मक प्रचार से बनाई दूरी आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के चुनाव में लगातार नाकारात्मक चुनाव प्रचार किया जो उनके खिलाफ गया। केजरीवाल ने चुनाव से एक दिन पहले यहां तक कह दिया कि अगर दिल्ली में भाजपा जीतती है तो दिल्ली के लोगों को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा, अगर लोगों को डेंगू और चिकनगुनिया होता है, कूड़ा फैलता है तो इसके जिम्मेदार खुद दिल्ली की जनता होगी। लेकिन इन तमाम नकारात्मक चुनावी बयान के बीच भाजपा ने ऐसी किसी भी बयानबाजी से खुद को दूर रखा और लगातार दिल्ली में विकास के कामों पर जोर दिया। पार्टी ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव से सबक लेते हुए आप के खिलाफ नकारात्मक चुनाव प्रचार से खुद को दूर रखा।

यूपी चुनावों में जीत का लाभ दिल्ली के निकाय चुनाव में सबसे बड़ी बात यह रही है कि तकरीबन एक महीने पहले ही भाजपा को यूपी में प्रचंड जीत हासिल हुई और लगातार प्रदेश के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने फैसलों को लेकर चर्चा में रहे। हाल ही में दिल्ली के राजौरी गार्डेन में हुए उपचुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्द हो गई थी। ऐसे में लगातार भाजपा के पक्ष में चुनाव परिणामों ने पार्टी के लिए माहौल बनाने का काम किया।


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