उत्तर प्रदेश के शासनतंत्र को बुलेट ट्रेन से भी तेज गति देने के लिए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जिस तरह से पिल पड़े हैं उसमें एक नए मुहावरे को जन्म दिया है- न सोऊंगा न सोने दूंगा। केंद्रीय सरकार की बागडोर संभालने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस प्रकार न खाऊंगा न खाने दूंगा के घोष को सार्थक बनाया और अब न बैठूंगा न बैठने दूंगा का योगी ने जो संकल्प लिया है उसने उत्तर प्रदेश में अभूतपूर्व बहुमत प्राप्त भाजपा सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली को खास विशेषण प्रदान किया है।
योगी आदित्यनाथ ने बिना नारे के चुनावी संकल्प पत्र के मुद्दों को जिस तरह अंजाम देना शुरू किया है, उससे लोगों में उनकी कथनी को करनी में बदलने का विश्वास पैठ बनाता जा रहा है, यद्यपि कुछ लोगों की यह भी धारणा है कि जिस प्रकार पिछले पंद्रह सालों में राज्य का प्रशासनतंत्र चुनिंदा पटरी पर ही चलने का आदी है, वही कही इसे तेजी उसे डिरेल न कर दे। भारतीय जनता पार्टी को चौदह वर्ष बाद अपने बलबूते पर सत्ता में आने का अवसर मिला है। इन चौदह वर्षों में 2017 चुनाव के पूर्व उसने सत्ता मंा आने की क्षमता के प्रति अवाम को कभी आश्वस्त नहीं किया था फलतः इस दौरान सत्ता में रहने वाले दलों की ‘‘जनहित’’ सम्बन्धी प्राथमिकताओं का दंश झेलते हुए भी वह कुएं से निकलकर खाई में गिरने का विकल्प चुनती रही है।
भाजपा को 2014 में लोकसभा चुनाव में मिली सफलता से अवाम ने उसके सत्ता में आने की संभावना समझी और मोदी सरकार के भ्रष्टाचार रहित, गरीबोन्मुखी अभियान को देखते हुए उसके द्वारा सुशासन की आस से अभूतपूर्व जनादेश दिया। योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना कर भाजपा ने जहां कानून के मुताबिक चलने वालों को ढ़ाढ़स बधाया है वहीं गैर कानूनी ढ़ंग से काम करने वालों को भयभीत भी किया है।
एक पखवाड़े तक अपने ढ़ंग से पुराने ढ़ांचे के सहारे चलने के बाद प्रथम प्रसासनिक दायित्व के फेरबदल से उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक सत्ता के लिए अनुकूलता से सत्ताधारी राजनेताओं के साथ-साथ स्वयं भी लाभान्वित होने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के वर्चस्व के दिन लद गए। योगी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के शासनतंत्र के लिए उन्हीं पुर्जों का उपयोग किया जाएगा जो उसके संकल्प सबका साथ और सबका विकास की पटरी पर चलने की सक्षमता रखते हैं।
किन्हीं विशेष पटरियों पर ही चलने की परंपरा का अंत कर पाना योगी शासन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी। इसकी शुरूआत दूसरे फेरबदल से हो चुकी है, लेकिन आम आदमी तो निचले स्तर की नौकरशाही जो जनपदों और तहसीलों थानों में बैठी है, से निजात पाने का इंतजार कर रही है। क्या उस स्तर की नौकरशाही न सोने और न सोने देने के उद्भूत मुहावरे को समझ रही है? शायद अभी नहीं। इसके लिए बुलेट ट्रेन को निचले पायदान तक पहुंचाना होगा।
विधानसभा चुनाव के समय निर्वाचन आयोग को ज्ञापन देकर जिन दो अधिकारियों पर ‘‘समाजवादी कार्यकर्ता’’ का आरोप लगाते हुए उन्हें हटाने के लिए भाजपा ने ज्ञापन दिया था, उसको सत्ता संभालते ही दफा कर दिए जाने की लोगों को उम्मीद थी लेकिन प्रथम फेरबदल में भी वे अप्रभावित रहे। ये दो अधिकारी है राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक। सत्ता परिवर्तन के साथ ही दोनों राजनीतिक निर्णय के पहले ही ‘‘संकल्प पत्र’’ का पारायण कर जिस प्रकार अपने अधीन तंत्र को झकझोरना शुरू कर दिया है। वह प्रशासनतंत्र में गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास की पैठ नमूना है।
ऐसा बदलाव कुछ अन्य अधिकारियों में भी देखने को मिला है और वे नेपथ्य में फेंक दिए गए हैं, लेकिन इन दोनों के साथ-साथ कुछ और लोगों के यथावत बने रहने के पीछे की रणनीति क्या हो सकती है ?यह समझ पाने में असफल लोग उपयुक्त व्यक्ति को चयन करने में टकराव के कारण बताने में संकोच नहीं कर रहे हैं। कुछ समाचार पत्रों ने पसंद में मतभेद का भी उल्लेख किया है। जो भी हो प्रशासनतंत्र के सर्वोच्च पद पर आसीन लोगों को लेकर दुविधा की स्थिति का अंत होना योगी शासन की गतिशीलता के लिए आवश्यक है।
भाजपा के संकल्प पत्र में किसानों के कर्ज की माफी, महिलाओं की सुरक्षा, भ्रष्टाचार की जांच, शांति व्यवस्था कायम करना, मुस्लिम महिलाओं में तीन तलाक पर रायसुमारी आदि को प्रमुख रूप से स्थान मिला था। इन आश्वासनों को पूरा करने के लिए कदम उठाये जा चुके है। अवैध बूचड़खानों को बंद करने का अभियान तो विधिवत निर्देश जारी करने के पूर्व ही शुरू हो गया था। जिसको लेकर अल्पसंख्यको के उत्पीड़न, रोजी-रोटी पर प्रहार से लेकर लोगों के आहार चयन के मौलिक अधिकार के हनन तक को शोरगुल और साथ में ‘‘हड़ताल’’ का सहारा लेकर सरकार को स्वेच्छाचारी बताने का प्रयास किया गया। योगी को मुख्यमंत्री बनाने को ले कर उग्र हिन्दुवाद की राह पर चलने की संभावना भी व्यक्त की गई तथा कुछ अति उत्साही लोगों के क्रियाकलापों का सहारा लेकर अवैध बूचड़खानों के पक्ष में माहौल बनाने का भी प्रयास किया।
योगी के मुख्यमंत्री बनने पर देश और विदेश में भी-विशेषकर अंग्रेजी माध्यम वाले मीडिया द्वारा जो कुत्सित प्रचार चलाया गया, वह कुछ वैसा ही है जैसा गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी के खिलाफ चला था। लेकिन जिस प्रकार गुजरात सुशासन का माडल बन गया हे, वैसी ही कुछ दिशा पकड़ने के कारण कई राज्य अब योगी माडल का अध्ययन करने में लग गए हैं।
पूर्वाग्रह से ग्रसित लोगों की जैसी भी भावना हो, योगी ने प्रधानमंत्री के समान ही सबका साथ, सबका विकास की राह पर बिना हिचकिचाहट और बिना डगमगाये कदम बढ़ा दिया है। ये कदम जिस गति से बढ़ रहे है, उसमें कहीं शिथिलता आने की उम्मीद रखने वालों को इसलिए निराश होना पड़ेगा, क्योंकि मुख्यमंत्री का दायित्व संभालने वाला व्यक्ति इस दायित्व को संभालने के पूर्व से ही कठोर व्रत के साथ जीने का अभ्यस्त है। मुझे स्मरण है कई बार उनके गुरू महंत अवैधनाथ कहा करते थे-छोटे बाबा कब सोते हैं और कब जगते हैं, पता ही नहीं चलता। कठिन से कठिन परिस्थितियों में सहज रहना छोटे बाबा के स्वभाव में है।
इसलिए कतिपय घटनाओं के संदर्भ में उनकी प्रतिक्रियात्मक अभिव्यक्ति को मुद्दा बनाकर जो लोग उनके प्रति जनसामान्य का विश्वास डिगाना चाहते हैं, उन्हें सफलता नहीं मिलेगी। भाजपा उत्तर प्रदेश में जिस प्रबल बहुमत के साथ सत्ता में आई उससे देश के उन भागों में भी जहां उसका प्रभाव नहीं है, सत्ता में आने की संभावना दिखाई पड़ने लगी है। लेकिन उसकी सफलता सबका साथ-सबका विकास की राह पर केंद्रित होकर चलने में निहित है।
कुछ लोग भावनात्मक पहलुओं को उसकी वैधानिकता और व्यवहारिकता को समझे बिना अतिशय अनुकूलता का प्रदर्शन कर इस विश्वास पर संदेह प्रश्नचिन्ह लगाने का काम, उन लोगों से कहीं अधिक प्रभावी ढ़ंग से कर रहे हैं जो अभूतपूर्व चुनावी हार की पीड़ा से तड़फड़ा रहे हैं। वाणी में संयम और कर्म में दृढ़ता से माहौल को
बदला जा सकता है। मोदी के बाद योगी इसकी मिसाल है।
बदला जा सकता है। मोदी के बाद योगी इसकी मिसाल है।
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