इस्लामाबाद.पाकिस्तान की एक मशहूर यूनिवर्सिटी ने हॉस्टल्स में रहने वाली लड़कियों के लिए एक फरमान जारी किया है। 37 साल पुरानी इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी (IIU) के एडमिनिस्ट्रेशन ने लड़कियों के बेड शेयर करने पर रोक लगा दी है। लड़कियों से यह भी कहा गया है कि वे अपने बेड के बीच कम से कम 2 फीट की दूरी रखें।लगेगा भारी जुर्माना...
- न्यूज एजेंसी के मुताबिक यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट डायरेक्टर नादिया मलिक के ऑफिस से इसके लिए नोटिफिकेशन जारी किया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि नोटिफिकेशन के मुताबिक अगर कोई लड़की अपने दोस्तों या बहनों के साथ बेड शेयर करते पाई गई तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा। एक ही कंबल या चादर ओढ़कर बैठने या सोने या एक ही बेड पर बैठने को भी 'बेड शेयरिंग' माना गया है।
- यूनिवर्सिटी में लड़कियों के लिए 7 हॉस्टल ब्लॉक हैं जिसमें करीब 2500 स्टूडेंट्स के रहने-खाने की व्यवस्था है।
- यूनिवर्सिटी में लड़कियों के लिए 7 हॉस्टल ब्लॉक हैं जिसमें करीब 2500 स्टूडेंट्स के रहने-खाने की व्यवस्था है।
सोशल मीडिया में बहस शुरू
- एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि इस नोटिफिकेशन के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है क्योंकि यह फरमान खासतौर पर गर्ल्स हॉस्टल्स के लिए जारी किया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि कई स्टूडेंट्स यूनिवर्सिटी के बॉयज हॉस्टल्स में गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं।
- एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि इस नोटिफिकेशन के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है क्योंकि यह फरमान खासतौर पर गर्ल्स हॉस्टल्स के लिए जारी किया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि कई स्टूडेंट्स यूनिवर्सिटी के बॉयज हॉस्टल्स में गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं।
यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन का क्या कहना है?
- IIU एडमिनिस्ट्रेशन की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि ऐसा पाया गया था कि कुछ लड़कियां अपने नाम पर अलॉट बेड पर अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को सुला रही थीं। बहरहाल, ऐसा माना जा रहा है कि इस नोटिफिकेशन का असल मकसद स्पेस मैनेजमेंट और एडमिनिस्ट्रेटिव मुद्दों को हल करना है, लेकिन जिस तरह से नोटिफिकेशन में जेंडर स्पेस्फिक लैंग्वेज (लिंग भेद सरीखी भाषा) का इस्तेमाल किया गया है, उस पर विवाद खड़ा हो गया है।
- IIU एडमिनिस्ट्रेशन की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि ऐसा पाया गया था कि कुछ लड़कियां अपने नाम पर अलॉट बेड पर अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को सुला रही थीं। बहरहाल, ऐसा माना जा रहा है कि इस नोटिफिकेशन का असल मकसद स्पेस मैनेजमेंट और एडमिनिस्ट्रेटिव मुद्दों को हल करना है, लेकिन जिस तरह से नोटिफिकेशन में जेंडर स्पेस्फिक लैंग्वेज (लिंग भेद सरीखी भाषा) का इस्तेमाल किया गया है, उस पर विवाद खड़ा हो गया है।
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