2012 की रात को पूरा देश आज तक नहीं भूल पाया है। अपने दोस्त के साथ घर से फिल्म देखने निकली पैरामेडिकल की पढ़ाई कर रही निर्भया की जिंदगी इस रात तबाह हो गई।
कुछ ही पलों में उसकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। इस घटना के 13 दिन बाद वह जिंदगी से जंग हार गई। 1585 दिनों तक चली लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार आज सुप्रीम कोर्ट ने भी चारों दोषियों की फांसी पर मुहर लगा दी। निर्भया के साथ दरिंदगी देश में एक ऐसा जनआंदोलन खड़ा कर गई, जिसे शायद ही पहले कभी देखा गया हो। इंसाफ के लिये पुलिस की लाठियां खाने के लिये हर कोई पहुंच चुका था।
13 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच अस्पताल में उसके मन में यौन उत्पीड़न की कोई याद बाकी नहीं थी, पर जो दर्द उसके शरीर को दहला रहा था, वह था उसके साथ हुई बर्बर क्रूरता की यादें। सफदरजंग अस्पताल में जिंदा रहने के लिए संघर्ष करती उस बहादुर लड़की ने अपनी मां को बताया, ”बहुत मारे वो लोग, उन्हें छोडऩा मत।” 2010 और 2011 में टीवी पर दिनभर छाए घोटालों की खबरों से वह तंग आ चुकी थी। उसने एक बार अपने मां-बाप से कहा था, ”जब हम लोगों का समय आएगा, जब हम बड़े होंगे तो हम व्यवस्था को ठीक कर देंगे।”
निर्भया की मौत के बाद देश के लोगों का गुस्सा सरकार के प्रति जमकर फूटा था। वह एक ऐसा समय था जब गहरी नींद में सोई सरकार को जगाने के लिये देश के लोगों ने सबक सिखाने का बीड़ा उठा लिया था। घटना के चार दिन बाद यानि 20 दिसंबर को बड़ी संख्या में छात्रों ने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के घर के बाहर प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन ने सरकार की नींद तोड़ डाली और अगले ही दिन निर्भया के साथ दरिंदगी की सभी हदें पार करने वाले नाबालिग और छठे आरोपी अक्षय ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया। इस केस में सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद न्याय की मांग उठने लगी।
22 दिसंबर के वो दो दिन इस क्रांति की शुरुआत था। इंडिया गेट से लेकर रायसीना हिल तक लगभग 2.5 किलोमीटर लंबा राजपथ हजारों की संख्या में आए प्रदर्शनकारियों से भर गया। अति सुरक्षित क्षेत्र में प्रदर्शनकारियों की इतनी बड़ी संख्या देख पुलिस अधिकारी सकते में आ गए। भीड़ का गुस्सा बैरिकेड्स रौंदते हुए राष्ट्रपति भवन की ओर बढ़ने लगा तो पुलिस ने आंसूगैस और पानी की बौछार से उन्हें रोकने की कोशिश की। महिलाएं हाथ से चूड़ियां निकालकर पुलिस की ओर फेंकने लगीं तो कुछ ने चप्पलें भी फेंकीं। ताज्जुब की बात यह थी कि इस आंदोलन का कोई नेता नहीं था, लोग बिना बुलाए ही जुटते गए और कारवां बनता गया।
अगले दिन यानि 23 दिसंबर को सुबह से ही जोरदार प्रदर्शन हुआ। मुख्य प्रदर्शन इंडिया गेट पर हजारों लोग शाम तक डटे रहे। पुलिस बलों ने जब उन्हें वहां से हटाने का प्रयास किया तो पुलिस से उनकी झड़प हो गई जिसमें लगभग 50 लोग घायल हो गए। इस बीच आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल, बाबा रामदेव समेत कई नेता भी इस प्रदर्शन में शामिल होने के लिए पहुंच चुके थे। लोगों का गुस्सा शाम होते-होते बढ़ने लगा। इस बीच गैंगरेप के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस ने सख्ती तेज कर दी। पुलिस ने इंडिया गेट खाली कराने के लिए प्रदर्शनकारियों पर लाठियां चलाईं और पानी की बौछारें फेंकी। देखते ही देखते शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा यह विरोध-प्रदर्शन हिंसक रूप ले चुका था। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच धक्कामुक्की की।
Bahadur thi salaam to her with tears
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