साल 2007 की वो तारीख 21 अप्रैल थी. 20 साल लंबे इंतजार के बाद पहली बार उसका नाम पुलिस रजिस्टर में दर्ज किया जा रहा था. मुंबई के नागपाड़ा में जिस घर पर अवैध कब्जा करके वो रह रही थी, उससे मुंबई पुलिस का हेडक्वॉर्टर बमुश्किल एक किलोमीटर दूर था. फिर भी वो फरार हो गई. कहते हैं कि साउथ मुंबई से बांद्रा और कुर्ला तक उसकी इजाजत के बगैर कोई बिल्डिंग नहीं बन सकती थी, पर पुलिस को उसका ठिकाना नहीं पता था. महीने भर बाद वो अरेस्ट होकर कोर्ट गई. बेल के साथ बाहर आई. वो उसकी पहली और आखिरी पेशी थी, …क्योंकि वो देश के पहले और दुनिया के तीसरे मोस्ट वॉन्टेड दाऊद इब्राहिम की बहन थी… क्योंकि वो मुंबई की गॉडमदर थी …क्योंकि वो हसीना पारकर थी.
‘शूटआउट ऐट लोखंडवाला’ बना चुके डायरेक्टर अपूर्व लाखिया की अगली फिल्म ‘हसीना पारकर’ हसीना की बायोपिक है. इसमें श्रद्धा कपूर हसीना और उनके भाई सिद्धांत दाऊद का किरदार निभा रहे हैं. फिल्म चर्चा में है, श्रद्धा चर्चा में हैं और हम आपको हसीना के बारे में बता रहे हैं. शुरुआत एक किस्से से.
अप्रैल 2007 में FIR दर्ज होने के बाद हसीना को फरार हुए हफ्ता भर हो चुका है. गार्डेन हॉल अपार्टमेंट में उनके घर और आस-पास भीड़ है. वहां तैर रही भुनभुनाहट में चिंता घुली है, पर सबको यकीन है कि ‘आपा’ लौट आएंगी. वो कहते हैं, ”आपा के पास ‘भाई’ हैं. उन्हें कुछ नहीं होगा.” वहां खड़े जिस शख्स को भी आप निगाह भरके देख लेंगे, वही अपने हिस्से की ‘आपा’ सुनाने लगता है. इलाके में ही मोबाइल की दुकान चलाने वाला एक लड़का बताता है, ”सालभर पहले मेरी बहन एक आदमी के साथ भाग गई थी. आपा ने उस आदमी को धमकाया और मेरी बहन वापस आ गई.”
वीडियो में जानिए हसीना की कहानी:
ये हसीना के काम करने का तरीका था. अब शुरू से शुरू करते हैं…
1959 में पैदा हुई हसीना दाऊद से छोटी और 10 भाई-बहनों में सातवें नंबर पर थी. इब्राहिम कासकर के ये सारे बच्चे महाराष्ट्र के रत्नागिरि में पैदा हुए थे. दाऊद ने अपने भाई शब्बीर इब्राहिम कासकर के साथ डी-कंपनी शुरू की थी. दाऊद की चार बहनें थीं- सईदा, फरजाना, मुमताज और हसीना, लेकिन उसके धंधे में उसकी किसी बहन के लिए जगह नहीं थी. हसीना के धंधे में आने की कहानी एकदम फिल्मी है. उसके पति की हत्या ने उसे मुंबई की ‘गॉडमदर’ बना दिया.
दाऊद के अपराधों ने उसे 80 के दशक में ही भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था, लेकिन वो बाहर बैठकर मुंबई चला रहा था. प्रोटेक्शन मनी वसूलना, मर्डर और दूसरे गैर-कानूनी धंधे, दाऊद का सबमें हाथ था. उसकी देखा-देखी और भी ढेर सारे गैंग पैदा हुए, जिनके आपसी गैंगवॉर ने मुंबई की सड़कें खूब लाल कीं.
जब दाऊद के धंधे में जगह नहीं थी, तो गॉडमदर कैसे बनी हसीना
90s की शुरुआत में दाऊद के निशाने पर था BRA गैंग. BRA यानी बाऊ रशीम, रमा नाइक और अरुण गवली. इसका मुखिया था रमा नाइक. अरुण गवली उस समय गैंग का नंबर 3 हुा करता था. रशीम और नाइक के मारे जाने के बाद गैंग की कमान गवली के हाथ में आ गई. 1990 के आस-पास दाऊद गवली के शूटर्स को चुन-चुनकर मरवा रहा था. दाऊद मजबूत था, उसका सिंडिकेट बेहद ऑर्गनाइज्ड था. ऐसे में गवली गैंग को कोई सिरा मिल ही नहीं रहा था, जिसे पकड़कर वो दाऊद तक पहुंच सके. इसी सिलसिले में जब दाऊद ने अरुण गवली के भाई पापा गवली को मरवा दिया, तो अरुण और उसका गैंग फट पड़ा.
मुंबई की क्रिमिनल इंडस्ट्री में एक अघोषित नियम है. घरवाले दुश्मनी के बीच नहीं आते हैं. आपकी जिससे दुश्मनी है, आप उससे निपटिए. पैसे का मामला हो या वर्चस्व का, आप सामने वाले के घरवालों पर हाथ नहीं डालेंगे. पुलिस भी इस नियम का पालन करती है. बौखलाए गवली ने ये नियम तोड़ दिया. जब वो दाऊद और उसके गुर्गों का कुछ नहीं बिगाड़ पाया, तो उसने हसीना के पति इस्माइल इब्राहिम पारकर की हत्या करवा दी. इस्माइल से हसीना की शादी तब हुई थी, जब वो महज 17 साल की थी.
इस्माइल जूनियर फिल्म आर्टिस्ट था, लेकिन बताते हैं कि बाद में उसने होटल का धंधा किया. नागपाड़ा में जहां हसीना रहती थी, उसी इलाके में इस्माइल का एक होटल था. 26 जुलाई, 1991 को हत्या वाले दिन इस्माइल दोपहर में अपने होटल के काउंटर पर बैठा था. तभी कार से कुछ हथियारबंद लोग आए और इस्माइल को भूनकर चले गए. दाऊद के जीजा का कत्ल हो चुका था. अब उसके पलटवार की बारी थी.
जेजे हॉस्पिटल शूटआउट, जब इस्माइल का बदला लिया गया
इस्माइल की हत्या के दौरान दाऊद गैंग में उथल-पुथल चल रही थी. दाऊद के इर्द-गिर्द बैठने वाले लोग उसे राजन के बारे में सोचने के लिए कह रहे थे, क्योंकि उनके मुताबिक राजन सिंडिकेट के अंदर एक सिंडिकेट चला रहा था और एक दिन गैंग पर कब्जा कर सकता था. दाऊद इन बातों पर ध्यान नहीं दे रहा था, तो राजन के खिलाफ बोलने वाले सुनील सावंत उर्फ सौत्या और छोटा शकील ने दाऊद से कहा कि अगर राजन वफादार है, तो उसने इतने दिनों बाद भी इस्माइल का बदला क्यों नहीं लिया.
जब दाऊद ने राजन से ये पूछा, तो राजन ने कहा कि इस्माइल के हत्यारे जेजे हॉस्पिटल में टाइट सिक्यॉरिटी के बीच एडमिट हैं, उनके बाहर आते ही उन्हें मार दिया जाएगा. सौत्या और शकील ने मौका लपक लिया. उन्होंने दाऊद से कहा कि वो इस्माइल का बदला लेना चाहेंगे. दाऊद ने इजाजत दे दी. दाऊद की निगाह में खुद को उठाने के लिए ये उन दोनों के सामने अच्छा मौका था.
इस काम के लिए उन्होंने यूपी के गैंगस्टर बृजेश सिंह और उसके दो करीबी शूटर्स बच्ची पांडे और सुभाष सिंह ठाकुर को हायर किया. सबको ऑटोमेटिक हथियार दिए गए. ये पहली बार था, जब गैंग के शूटआउट में एके-47 का इस्तेमाल हो रहा था. 12 सितंबर, 1992 को शूटआउट से कुछ घंटे पहले ही रेकी की गई और फिर हॉस्पिटल में घुसकर शैलेष हलंदकर को मार दिया गया, जिस पर इस्माइल की हत्या का शक था. रेकी करने वाले ये नहीं जान पाए थे कि एक और शख्स बिपिन शेरे दूसरे वॉर्ड में शिफ्ट किया जा चुका है, वरना वो उसे भी मारने वाले थे.
आमतौर पर अंडरवर्ल्ड वाले पुलिस की दुश्मनी से बचने के लिए पुलिसवालों पर हमला नहीं करते थे, लेकिन ये हमला इतना बड़ा था कि इसमें दो पुलिस कॉन्स्टेबल और एक इंस्पेक्टर की मौत हो गई.
इसके बाद हसीना के रास्ते खुल गए
इस्माइल का बदला लिए जाने के बाद हसीना अपनी नई मांद, नागपाड़ा के गार्डेन हॉल अपार्टमेंट में शिफ्ट हो गई. यहां उसे जो घर पसंद आया था, उसने उसका ताला तुड़वाकर रहना शुरू कर दिया और किसी ने कोई शिकायत नहीं की. अड्डा जमा और यहीं से हसीना ने अपना क्राइम सिंडिकेट चलाना शुरू किया. दाऊद के भारत से जाने के बाद हसीना का काम उसकी 54 बेनामी संपत्तियों की देख-रेख करना था, लेकिन खुद धंधे में आने के बाद हसीना को इस सबमें मजा आने लगा. वो और एक्टिव हो गई.
बेशुमार ताकत, अपने इर्द-गिर्द अहसानों से दबे लोग, हर अवैध ट्रांजैक्शन में हिस्सा, मुंबई में हर इमारत बनने से पहले उसकी इजाजत… हसीना को मुंबई पर राज करना भा रहा था. वो इसमें डूब चुकी थी. बताते हैं कि दाऊद को ये बिल्कुल पसंद नहीं था. उसने कई बार हसीना को मना भी किया, क्योंकि उसके मुताबिक हसीना को ये सब करने की जरूरत ही नहीं थी. बहनों को कोई दिक्कत न हो, इसके लिए दाऊद अपनी चारों बहनों को हर महीने करोड़ों रुपए भेजता था. लेकिन हसीना को ताकत की लत लग चुकी थी और इसका कोई इलाज नहीं था.
फिर यही लत उसके लिए परेशानी लेकर आई
मुंबई में 2006 में जब स्लम रीडेवलपमेंट अथॉरिटी का काम बड़े जोर-शोर से चल रहा था, तब हसीना ने बिल्डर कृष्ण मिलन शुक्ला और प्रॉपर्टी ब्रोकर चंद्रेश शाह के साथ वडाला में एक छोटा स्लम क्लस्टर डेवलप करने का प्लान बनाया. इसके लिए एक करोड़ रुपए की जरूरत थी. इन तीनों ने एक और प्रॉपर्टी ब्रोकर विनोद अल्वानी से पैसे का इंतजाम करने के लिए कहा और विनोद ने एक डेवलपर जयेश शाह की मदद से एक करोड़ रुपए का इंतजाम किया.
लेकिन, ये प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाया. जब जयेश ने अपना पैसा वापस मांगा, तो विनोद उसे सिर्फ 70 लाख रुपए ही वापस कर पाया, क्योंकि बाकी के 30 लाख रुपए हसीना ने प्रोटेक्शन मनी के नाम पर लौटाने से इनकार कर दिए. दिसंबर 2006 में जब विनोद क्राइम ब्रांच गए, तो वहां FIR ही नहीं लिखी गई. फिर दोनों एंटी-करप्शन ब्यूरो गए और आरोप लगाया कि क्राइम ब्रांच के अफसर अनिल महाबोले और राजेंद्र निकम ने शिकायत लिखने के एवज में उनसे 10 लाख रुपए मांगे थे. 21 अप्रैल, 2007 को ये केस एंटी-एक्टॉर्शन सेल के हवाले कर दिया गया और हसीना पर FIR हो गई.
गवाह थे, शिकायत करने वाले थे, पर 4 महीने तक नहीं लिखी गई हसीना के खिलाफ FIR
ढेर सारी लीपापोती के बाद जब क्राइम ब्रांच के अफसरों के खिलाफ जांच शुरू हुई, तो जॉइंट कमिश्नर मीरा बोरवानकर की तरफ से सफाई आई कि उनके आदमी मामले की जांच कर रहे थे, ताकि पुख्ता जानकारी के बाद शिकायत दर्ज की जा सके. हालांकि, चार महीने की जांच में क्या मिला, इसका कोई जवाब उनके पास नहीं था. 21 अप्रैल को FIR के बाद जब हसीना फरार हो गई, तो सेशंस कोर्ट ने भी पुलिस को फटकार लगाते हुए हसीना को किसी भी हाल में 16 मई तक गिरफ्तार करके लाने का आदेश दिया था.
हसीना की बात करो, तो हड़बड़ा जाते थे पुलिसवाले
हसीना का नेटवर्क इतना तगड़ा था कि उसे पुलिस एक्शन का पता बहुत पहले ही लग गया था और वो फरार हो गई. क्राइम ब्रांच के अफसरों से जब हसीना के ठिकाने के बारे में पूछा जाता था, तो वो हड़बड़ाते हुए कहते थे कि गवाह छोड़िए, कोई इन्फॉर्मर उसके बारे में खबर नहीं देना चाहता है. पुलिस इंटरसेप्शन के डर से वो खुद दाऊद से संपर्क में नहीं रहती थी, लेकिन बताते हैं कि उसके पास मेसेंजर्स का ऐसा नेटवर्क था, जो दोनों को टच में बनाए रखते थे. 2007 में क्रिमिनल रिकॉर्ड की वजह से हसीना को दोबारा पासपोर्ट जारी नहीं किया गया था, लेकिन आशंका जताई जाती है कि इससे पहले वो देश से बाहर दाऊद से कई बार मिली.
किन-किन धंधों में थी हसीना पारकर
इंडिया टुडे की 2007 की रिपोर्ट के मुताबिक हसीना का उसके इलाके में होने वाले हर अवैध धंधे में इन्वॉल्वमेंट होता था. मुंबई में जितने भी संदेहास्पद ट्रांजैक्शन होते थे, हसीना का सबमें हिस्सा होता था. इन पैसों के बदले में वो लोगों को कानूनी पचड़ों से प्रोटेक्शन देती थी. एक वक्त था, जब मुंबई में सरकारी इमारत भी हसीना की इजाजत से बनती थी. उसमें भी हसीना का हिस्सा होता था. लोग अपने विवाद लेकर हसीना के पास आते थे और वो उन्हें सुलटाती थी. इसके बदले में भी वो मोटी रकम वसूलती थी. इसके अलावा-
– स्लम रीडेवलपमेंट अथॉरिटी (SRA): झुग्गियों में रहने वाले लोगों से उनकी जगह पर अपने प्लॉट डेवलप करने की ‘परमीशन’ लेने के लिए मुंबई के ढेर सारे बिल्डर्स हसीना के पास आते थे. SRA प्लॉट्स में अंडरवर्ल्ड का इतना दखल हो गया था कि कोर्ट को 247 SRA मामलों में जांच का आदेश देना पड़ा था. हालांकि, 2007 तक इनमें से सिर्फ 11 मामलों में ही जांच शुरू हुई थी.
– फिल्में: बॉलीवुड फिल्मों के ओवरसीज राइट्स हासिल करना हमेशा से अंडरवर्ल्ड की फैंटेसी रही है. हसीना इन्हीं राइट्स के लिए मोलभाव करती थी. खासकर उन फिल्मों के लिए, जो रूस और खाड़ी देशों में रिलीज होती थीं.
– हवाला रैकेट: कथित तौर पर हसीना हवाला रैकेट में भी शामिल थी, जिसमें भारत से मिडिल ईस्ट पैसे भेजे जाते थे और वहां से मंगाए जाते थे.
– केबल वॉर: मुंबई में केबल ऑपरेटर्स का झगड़ा बहुत फेमस है. अंडरवर्ल्ड के बाद दूसरे नंबर पर इसी का नाम आता है, जिसमें न जाने कितने मर्डर हो चुके हैं. अपने इलाके बांटने के लिए केबल ऑपरेटर मदद के लिए ‘गॉडमदर’ के पास ही जाते थे. हसीना कथित तौर पर उन्हें प्रोटेक्शन देती थी और उसके कहने पर ही कोई एक-दूसरे के इलाके में दखल नहीं देता था.
– जबरन वसूली: हसीना की इनकम का सबसे बड़ा हिस्सा अवैध वसूली से ही आता था. प्रॉपर्टी और ठेकेदारी से जुड़े विवाद निपटाने पर वो पैसे वसूलती थी.
हसीना का खुद का परिवार
हसीना के परिवार में उसका पति, दो बेटे और दो बेटियां थीं. 2005 में उसने अपनी बड़ी बेटी की एक बिजनेसमैन से शादी कर दी थी. उसके बड़े बेटे दानिश की अप्रैल 2006 में एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी. दानिश धंधे में हसीना का हाथ बंटाता था. हसीना का काम ऑर्डर देना और सलीम का काम उसे एग्जिक्यूट करना था. उसके अलावा एक और आदमी भी था सलीम पटेल, जो हसीना का दांया हाथ था. हसीना के साथ आने से पहले सलीम इस्माइल का ड्राइवर था. हसीना के छोटे बेटे का नाम अली शाह है.
आखिरी वक्त में ऐसी हो गई थी हसीना
6 जुलाई, 2014 को रमजान के महीने में हसीना पारकर की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. हसीना ने उस दिन रोजा रखा था. सीने में दर्द होने पर उसे हबीब हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई. इससे पहले वो कई महीनों तक माइग्रेन से जूझती रही. माइग्रेन की वजह से वो अधिकतर वक्त बिस्तर पर ही रहती थी. लोगों से मिलना-जुलना बेहद कम हो गया था. ऐसे में वो खुद सामने मौजूद होने के बाद दाऊद फैमिली के नाम पर धंधा चलाती रही. एक अनुमान के मुताबिक 2014 में हसीना के पास पांच हजार करोड़ से ज्यादा की संपत्ति थी.
अब हसीना पर फिल्म आ रही है. डायरेक्टर अपूर्व लाखिया कह रहे हैं कि इसमें वो 17 साल से लेकर 40 साल तक की हसीना को दिखाएंगे. अपूर्व बताते हैं कि श्रद्धा कपूर ने उनकी उम्मीदों से बढ़कर काम किया है. जिन्होंने सिर्फ दाऊद के बारे में सुना है और जो हसीना को नहीं जानते हैं, उनके लिए ये फिल्म ट्रीट साबित हो सकती है. वैसे भी, फिल्म में खुद हसीना का किरदार कहता है, ‘आपा याद रह गया न, नाम याद रखने की जरूरत नहीं.’
(इंडिया टुडे और एस. हुसैन जैदी की किताब ‘डोंगरी टू दुबई’ से इनपुट के साथ.)
देखिए फिल्म ‘हसीना’ का ट्रेलर:
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